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दर्पण एक : हजारों चेहरे १६१ नहीं है। मैं औषधि के द्वारा तुम्हारी दृष्टि ठीक कर देता हूं, फिर तुम स्वयं गिन लेना । इसी प्रकार व्यक्तिशः किसी के विषय में कुछ कहना मेरे लिए उचित नहीं। मैं साधु के लक्षण बतलाकर तुम्हें दृष्टि प्रदान कर सकता हूं, फिर साधु और असाधु के विषय में जांच तुम स्वयं कर लेना।
पूर्वजों का अस्तित्व एक बार केलवा के ठाकुर मोखमसिंहजी ने स्वामीजी से पूछा---'आप आगम सुनाते हैं, उसमें भूत और भविष्य सम्बन्धी अनेक घटनाएं आती हैं, परन्तु उन्हें किसी ने देखा नहीं है, अतः वे सत्य हैं या नहीं, इसका निर्णय कैसे हो ?'
स्वामीजी ने कहा- 'तुम अपने पूर्वजों के नाम तथा उनके जीवन-सम्बन्धी अनेक घटनाएं जानते हो, परन्तु उनको तुमने देखा नहीं है, तब उनकी सत्यता पर कैसे विश्वास करते हो?' ___ठाकुर बोले-'पूर्वजों के नाम तथा उनकी जीवनियां भाटों की पुस्तकों में लिखी हुई हैं, उन्हीं के आधार पर हम जानते हैं।'
स्वामीजी ने कहा-'भाटों के असत्य बोलने तथा लिखने का त्याग नहीं है, फिर भी उनकी लिखी घटनाओं को सत्य मानते हो, तब ज्ञानियों द्वारा प्ररूपित शास्त्रों को सत्य मानने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।'
ठाकुर बड़े प्रसन्न हुए और कहने लगे-'प्रश्नों का ऐसा प्रभावशाली उत्तर देने वाला अन्य कोई व्यक्ति मैंने नहीं देखा।' छह महीने बचे वि० सं० १८५३ में स्वामीजी मांढा पधारे। वहां गृहस्थावस्था में हेमजी ने सिरियारी से आकर दर्शन किये। दूसरे दिन प्रातः स्वामीजी ने कुशलपुर की ओर विहार किया तथा हेमजी नीमली के मार्ग से सिरियारी की ओर चल दिये । मार्ग में स्वामीजी को अच्छे शकुन नहीं हुए, अतः वे भी मार्ग को छोड़कर नीमली की ओर ही आ गये । हेमजी की गति मन्द थी और स्वामीजी की तेज, अतः पीछे से चलने पर वे उनसे आ मिले । स्वामीजी ने आवाज देते हुए कहा'हेमड़ा ! हम भी इधर ही आ रहे हैं।'
हेमजी ने स्वामीजी को देखा, तो ठहरकर वन्दन किया और पूछा-'आपने तो कुशलपुर की ओर विहार किया था, फिर इधर कैसे ?'
स्वामीजी ने कहा—'यही समझ ले कि आज तेरे लिए ही आये हैं।' हेमजी ने कहा-'बड़ी कृपा की।' स्वामीजी बोले--'तू लगभग तीन वर्ष से कह रहा है कि मेरी दीक्षा लेने की
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