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________________ १६० चिन्तन के क्षितिज पर को हंसते हुए सुन ही नहीं लेते थे, किन्तु अपने ही हाथों से उन बातों को लिख भी लेते थे। उनके हाथ से लिखे हुए ऐसे अनेक पत्र आज भी सुरक्षित हैं, जिन पर उनके तथाकथित अवगुण लिखे हुए हैं। उनके जीवन में ऐसे अवसर अनेक बार आये, जब स्वयं उन्हीं के सामने तथा अगल-बगल के स्थानों पर विरोधी लोग उनके विरुद्ध प्रचार करने लगे और वे चुपचाप सुनते रहे । स्वामीजी अपने विरोधियों द्वारा किये गये किसी भी कार्य को प्रायः गुण रूप में लेने का ही प्रयास किया करते थे। कहा जा सकता है कि वे अनन्य रूप से गुणग्राही व्यक्ति थे । गुण को ग्रहण करना और मानना एक बात है, पर किसी के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निंदा किये जाने पर भी उसमें कहीं-न-कहीं गुण को खोज निकालने का प्रयास करना बिलकुल दूसरी बात है। यह तो किसी महापुरुष का ही कार्य हो सकता है। स्वामीजी निस्संदेह ऐसे ही व्यक्तियों में से थे, जो बुराई में भी भलाई खोज लेते हैं। अवगुण निकालने ही हैं किसी ने आकर स्वामीजी को बतलाया कि अमुक स्थान पर लोग एकत्रित हो रहे हैं और वहां अमुक व्यक्ति आपके अवगुण निकाल रहा है। स्वामीजी बोले-~-'निकाल ही रहा है, डाल तो नहीं रहा? यह तो बहत अच्छी बात है। मुझे अवगुण निकालने ही हैं। कुछ मैं निकालूंगा, कुछ वह निकालेगा, चलो, इस प्रकार वे और भी शीघ्र निकल जाएंगे।' ठोक-बजाकर देखता है एक बार चर्चा में पराजित होकर एक भाई ने विशवश स्वामीजी की छाती पर मक्का मारा और चल दिया। साधुओं को वह बहुत बुरा लगा । उन्होंने स्वामीजी से प्रार्थना की कि ऐसे अयोग्य व्यक्तियों से चर्चा करने में कोई लाभ नहीं है। ___ स्वामीजी ने मुस्कराते हुए कहा--'जब कोई मनुष्य दो-चार पैसे मूल्य की मिट्टी की हंडियां खरीदता है, तब पहले उसे ठोक-बजाकर देख लेता है कि कहीं फूटी हुई तो नहीं है ? यहां तो फिर जीवन भर के लिए गुरुधारणा करने की बात है, अतः यह बेचारा ठोक-बजाकर देख लेना चाहे, तो अनुचित क्या है ?' साधु कौन और ढोंगी कौन ? किसी व्यक्ति ने स्वामीजी से पूछा-'संसार में साधु का वेश पहनने वालों की संख्या बहुत है। उनमें सच्चे कौन हैं और ढोंगी कौन ?' स्वामीजी ने कहा-'किसी वैद्य से एक अचक्षु व्यक्ति ने पूछा----इस नगर में नंगे कितने हैं और सवस्त्र कितने ? वैद्य ने कहा- उनकी गिनती करना मेरा काम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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