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________________ १५० चिन्तन के क्षितिज पर महावीर को न कभी वैसा भय हुआ और न उनके संघ में कभी वैसी स्थिति पनपी ही। उन्होंने साधना के क्षेत्र में पुरुष के समान ही स्त्री को महत्त्व दिया और उसे मोक्ष की अधिकारिणी माना । आज समानता की बात करना सहज है, परन्तु आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व ऐसा सोच पाना भी सहज नहीं था। इससे अनुमान किया जा सकता है कि तब इसे सिद्धान्ततः प्ररूपित करने और वैसी व्यवस्था कर उसे कार्य रूप देने में कितना साहस और धैर्य चाहिए था। महावीर के इस कार्य को नारी-जाति के आत्म-जागरण का सूत्रपात कहा जा सकता है । अहिंसा और अनेकान्त अहिंसा और अनेकान्त भगवान् महावीर की आध्यात्मिक और दार्शनिक देन कही जा सकती हैं। यज्ञ की हिंसा को हिंसा तक न मानने वालों के युग में वायु और वनस्पति तक के सूक्ष्म जीवों के प्रति आत्मीयता बतलाना तथा समग्र विश्व में अहिंसा-स्थापना की भावना रखना बहुत बड़े आत्म-विश्वास की ही बात हो सकती है। उनकी अहिंसा-वृत्ति का प्रभाव इतना व्यापक हुआ कि हिंसा-धर्मियों को भी 'अहिंसा परमो धर्मः' कहने के लिए बाध्य होना पड़ा। आचार क्षेत्र में जहां अहिंसा ने अध्यात्म भाव को आगे बढ़ाकर जन-मानस को जगाया, वहां विचार-क्षेत्र में अनेकान्तवाद ने । यद्यपि भगवान् महावीर ने अहिंसा और अनेकान्त का उपयोग धर्म-क्षेत्र में ही किया, परन्तु ये सामाजिक, राजनीतिक आदि अन्य क्षेत्रों में भी संघर्ष-मुक्ति और समन्वय के लिए उपयोगी हो सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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