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१३८ चिन्तन के क्षितिज पर
अपनी क्रीड़ाओं के द्वारा उसके मन में विकार उत्पन्न करने में वे सहायक बन सकते हैं । तब फिर दूसरे से केवल मनुष्य के न होने की ही जो सीमा एकान्त के लिए बांधी जाती है वह सापेक्ष ही तो ठहरती है। उसके अतिरिक्त जंगल में यदि गुरु के साथ शिष्य रहता हो तो उसे भी एकान्त ही कहा जाता है । यों एकान्त स्वयं अनेकान्त बन जाता है सर्वत्र उसकी सीमा किसी विशेष दृष्टिकोण से ही निर्धारित की जाती रही है । अतः जंगल में चले जाने मात्र को ही एकान्त मान
।
ना परिपूर्ण नहीं होगा । प्रश्न --- पैदल चलने से आप लोगों का समय व्यय तो अधिक होता है और कार्य स्वल्प | यदि इस रूढ़ि को छोड़ दिया जाए और वर्तमान की वैज्ञानिक उपलब्धियों का उपयोग किया जाए तो क्या हर्ज है ? उससे अणुव्रत के प्रसार में त्वरता आ सकती है ।
उत्तर - हम अणुव्रत भावना को आम जनता में प्रसारित करना चाहते हैं । अतः यह आवश्यक है कि जन-साधारण से अधिकाधिक परिचय किया जाए । यह पद-यात्रा से ही सम्भव हो सकता है। कार्य विस्तार की दृष्टि से केवल बड़े-बड़े शहर ही नहीं, किन्तु छोटे-छोटे ग्रामों को कार्य क्षेत्र बनाना आवश्यक होता है । भारत की अधिकांश जनता अब भी ग्रामों में ही बसती है। उन तक पहुंचने के लिए पैदल चलने में समय का व्यय तो अवश्य होता है पर अपव्यय नहीं ।
वैज्ञानिक उपलब्धियों का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए, ऐसा कोई नियम नहीं है । फिर भी पद यात्रा के विषय में साधुओं के लिए एक अनिवार्य विधान है । यह कोई रूढ़ि नहीं, किन्तु एक सुविचारित और सुविहित तथ्य है । जैन परम्परा ने इसे एक उच्च वैचारिक भूमिका के रूप में स्वीकार किया है। हर संस्था में इसी प्रकार के कुछ उच्च आदर्श होते हैं और वे वैज्ञानिक उपलब्धियों के नाम पर छोड़े नहीं जाते। कांग्रेस ने अपने सदस्यों के लिए यह आवश्यक माना कि वे शुद्ध खादी का ही उपयोग करें। आज भी वही माना जा रहा है जबकि वैज्ञानिक उपलब्धियां बहुत आगे बढ़ चुकी हैं।
मोटर या हवाई जहाज का उपयोग करने से फिर हमारा हवाई सम्पर्क तो सम्भव हो जाता है, पर जन-सम्पर्क छूट जाता है । जन-मानस का विचार - स्तर जब रसातल की ओर जा रहा हो, उस समय हवा में उड़ने से उसकी सुरक्षा नहीं की
सकती । धरातल पर टिककर ही रोका जा सकता है । प्रसार में त्वरता आए यह आवश्यक तो है पर उससे भी अधिक आवश्यक यह ध्यान रखना है कि कहीं उस त्वरता में वास्तविकता पीछे न छूट जाए ।
प्रश्न --- मैं अणुव्रत आन्दोलन का आलोचक रहा हूं। मुझे लगता है कि अणुव्रत आन्दोलन ने देश की उन्नति के लिए कोई कार्य नहीं किया । क्या आप कोई ऐसा
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