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सदाचार से जुड़े प्रश्न
प्रश्न—साधु ने जब संसार को छोड़ ही दिया है तब उसे यहां क्यों रहना चाहिए? उसे तो सबसे अलग कहीं एकांत में चले जाना चाहिए।
उत्तर—यहां से आपका तात्पर्य इस कमरे या ग्राम से है अथवा इस पृथ्वी से। पृथ्वी से तो एक दिन सभी को चले जाना है। अतः साधु भी चले जाएंगे। परन्तु तब यह जानना आसान नहीं होगा कि जो यहां से गए, वे वस्तुतः ही चले गए, अथवा शरीर-परिवर्तन कर यहीं कहीं रह रहे हैं। यदि वे सचमुच ही कहीं अन्यत्र चले जाएंगे, तब भी जहां जाएंगे वहां संसार ही तो होगा। तब फिर यही प्रश्न सामने आएगा कि संसार को छोड़ने वाला आखिर कहां जाए? मुझे लगता है कि संसार को छोड़ने का अर्थ ही गलत लिया जा रहा है। उसका अर्थ कोई कमरा, ग्राम या पृथ्वी आदि क्षेत्र विशेष को छोड़ देने से सम्बद्ध नहीं है वहां तो संसार के प्रति जो मोह का बन्धन होता है, उसे ही छोड़ने का अर्थ है । यदि मोह का बन्धन छोड़ दिया जाता है, तो फिर यहां रहते हुए भी संसार छूट जाता है। अन्यथा कहीं भी नहीं छूटता।
दूसरी बात है एकान्त में चले जाने की। जैन परम्परा में दोनों ही प्रकारों को मान्यता दी गई है । आगम निर्दिष्ट योग्यता पा लेने के बाद इच्छा हो तो विजन में रहकर एकान्त और मौन साधना की जा सकती है अन्यथा समूह में रहकर भी। जब तक वह योग्यता प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक के लिए हर साधु को संघ में रहते हुए भी गुरु के पास अभ्यास करना आवश्यक होता है । एकान्त शब्द के अर्थ में भी कुछ अपेक्षाएं दिखाई देती हैं। जहां एक मात्र साधक के अतिरिक्त कोई दूसरा न हो उसे एकान्त कहें, तो यह प्रश्न सहज ही उठता है कि दूसरा कौन न हो? मनुष्य ही या पशु-पक्षी भी । पशु-पक्षी भी तो ध्यान में बाधा डाल सकते हैं ?
१. सन् १९६१ में मुनिश्री के जोधपुर प्रवास के समय प्रेस कांफ्रेंस तथा रोटरी क्लब आदि विभिन्न संस्थाओं में हुए कार्यक्रमों में प्रस्तुत की गई जिज्ञासाओं के समाधान।
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