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________________ १३६ चिन्तन के क्षितिज पर हाथ में तलवार । जरूरत आज इसी की है कि जीवन का व्यावहारिक रूप अच्छा हो ।' मुनिश्री - 'आचार्यश्री तुलसी द्वारा प्रवर्तित अणुव्रत आन्दोलन एक ऐसा ही उपक्रम है— केवल आदर्शों का ही रूप नहीं, वरन् जीवन की क्रिया में मलिनता न हो, इस ओर भी प्रयास किया जा रहा है। आचार्यश्री इसी उद्देश्य से निरन्तर पूरे देश की यात्रा कर रहे हैं । 'जैन दर्शन में आचार के साथ विचार की भी प्रधानता रही है । भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से एक ही सत्य को अनेक रूपों में आंका जा सकता है। ये सभी रूप सत्य के ही अंग होते हैं । जैन दर्शन अन्य विचारों के साथ भी समन्वय का दृष्टिकोण रखता है । यह इसकी विचार सम्बन्धी अहिंसा का द्योतक है ।' डॉ० राधाकृष्णन्— 'आज जैन धर्म की स्याद्वादी विचारधारा की इस युग को महती आवश्यकता है तथा दुनिया इसको महसूस भी कर रही है । आज रूस और अमेरिका एक-दूसरे के विरोधी - से प्रतीत होते हैं, परन्तु उनको निकट लाने के प्रयत्न भी सफल हो रहे हैं । 'यह सच है कि जहां एक दृष्टिकोण से एक-दूसरे में अन्तर है, वहां अन्य दृष्टिकोण से एक-दूसरे के निकट भी है । जैन धर्म की अन्य विचारों के साथ जो सहिष्णुता है, वास्तव में वह बहुत ही अनुकरणीय है । इस्लाम धर्म वाले चाहते हैं कि सब अन्य धर्म समाप्त हो जाएं और केवल इस्लामी राज्य सारे जगत में हो । ईसाई धर्म वाले भी चाहते हैं कि एक-एक मनुष्य ईसाई बन जाए तथा अन्य धर्म न रहे ।' मुनिश्री - ' शंकराचार्य आदि अनेक प्राचीन विद्वानों तथा वर्तमान के कुछ विद्वानों ने स्याद्वाद को बहुत गलत समझा है, यहां तक कि स्याद्वाद को छल तथा संशयवाद भी कहा है । स्याद्वाद के सम्बन्ध में आपके क्या विचार हैं ?' श्री राधाकृष्णन् - 'मैंने भी 'इण्डियन फिलासफी' में एतत् सम्बन्धी विचार लिखे हैं, परन्तु मैंने करीब ३० वर्ष पहले इस सम्बन्ध में पढ़ा था । विचारों में समन्वय का दृष्टिकोण बहुत जरूरी है । मैं तो स्वयं भी स्याद्वादी हूं—-विचारों में समन्वय रखना अनिवार्य समझता हूं। मैं सब धर्मों के जलसों में शरीक होता हूं । मेरा अधिक समय पढ़ने-लिखने में बीता है, यद्यपि अब तो उतना समय मिलता ही नहीं है, पर अब मैं इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि दुनिया के लिए पढ़ने-लिखने की अपेक्षा उसे सही रूप में जीवन में आचरण करना अधिक आवश्यक है ।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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