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________________ युग की आवश्यकता : स्याद्वाद (मुनिश्री बुद्धमल ने दिल्ली में अनेक चातुर्मास किए हैं। अनेक विशिष्ट विचारक और राजनेता मुनिश्री के सम्पर्क में आए हैं। उनसे देश की वर्तमान स्थिति, अणुव्रत की भूमिका आदि अनेक विषयों पर मुक्त विचार-मंथन हुआ है। इसी सन्दर्भ में भारत के उपराष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन के साथ हुआ वार्तालाप उल्लेखनीय है । लगभग पचास मिनट तक चले उस वार्तालाप के कुछेक बिन्दु ही संकलित हो पाए हैं । प्रस्तुत आलेख उस संकलन की निष्पत्ति है । -(सम्पादक) मुनिश्री बुद्धमल--'आज जो भौतिक विचारधारा हर मनुष्य के जीवन का अंग बन गई है, उसमें अगर आत्मवादी विचारधारा का पुट रहे तो जीवन की भयंकरता दूर हो जाए तथा जीवन का रूप सुन्दर हो जाए।' उपराष्ट्रपति डॉ० राधाकृष्णन्---'मैं भी ऐसा मानता हूं। आज पाश्चात्य जगत भी इस तथ्य को आवश्यक समझ रहा है। विशेषकर हमारे जीवन के सारे कार्य आत्म-जागृति के साधन रूप होने चाहिए । वास्तव में हमारा लक्ष्य आत्मज्ञान का साक्षात्कार ही तो है। विशेषकर आप साधुओं को आत्मवादी विचारधारा का प्रचार करने के लिए दूर तक जाना चाहिए। मानव-समाज सारे जगत् में फैला हुआ है-भगवान् महावीर तथा पार्श्वनाथ के समय में तो इतने आवागमन के साधन नहीं थे, परन्तु आज तो देहली से न्यूयार्क तक जाना भी उतना ही सरल है, जितना कि काशी से कलकत्ता।' ____ मुनिश्री-हम पदयात्री हैं। हमारे लिए यह संभव नहीं है। जैन साधुओं की अहिंसा से अनुप्राणित जीवन-चर्या युग के लिए एक आदर्श है। डॉक्टर राधाकृष्णन्—'जैन धर्म में आचरण की मुख्यता है, यह सच है। आज विशेष रूप में शुद्ध आचरण की ही आवश्यकता है। हर धर्म के आदर्श तो बहुत ऊंचे हैं, लेकिन उनका प्रायोगिक रूप वैसा नहीं। यही तो कारण है कि एटम बम, हाइड्रोजन बम तथा अन्य विनाशकारी तत्त्वों का जन्म हुआ है और होता जा रहा है । आदर्शों को जीवन में उतारने वाले कभी ऐसा काम नहीं कर सकते । सच तो यह है कि जहां एक हाथ में धार्मिक पुस्तक रहती है, वहां दूसरे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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