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१३४ चिन्तन के क्षितिज पर
परिवर्तन जोश या दबाव के क्षणों में स्वीकृत होते हैं । उनका प्रभाव हटते ही मानसिक दुराग्रह पूर्ववत् फन फैलाकर खड़े हो जाते हैं ।
परम्पराओं, प्रथाओं तथा रूढ़ियों का अस्तित्व यों तो पुरुषों तथा महिलाओंदोनों ही आश्रय की अपेक्षा रखता है फिर भी महिलाओं का आश्रय उनके लिए अधिक शक्तिदायक होता है । जिस प्रथा या परम्परा को केवल पुरुषों का आश्रय प्राप्त होता है वह प्रायः स्वल्पजीवी होती है परन्तु जिसे महिलाओं का आश्रय मिल जाता है, उसे सौ-सौ प्रयासों के बाद भी हटा पाना कठिन होता है ।
जिस समाज की महिलाएं सुशिक्षित तथा विचार - प्रवण होती हैं उस समाज को उन्नत होते देर नहीं लगती । वे यदि रूढ़ियों में जकड़ी हैं तो पुरुषों की शिक्षादीक्षा की ऊंचाइयां बौनी बनकर रह जाती हैं ।
क्षेत्र आध्यात्मिक हो चाहे सामाजिक, प्रत्येक में महिलाओं की उन्नति प्राथमिकता से अपेक्षित होती है, क्योंकि बालकों के तादृश संस्कार - निर्माण में उनकी भूमिका अधिक सार्थक होती है। पुरुषों को भी सुसंस्कारों में स्थिर रखने तथा बुराइयों के मार्ग पर न जाने देने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहता आया है । पुरुष जितना शीघ्र अपनी दुर्बलता का शिकार हो जाता है, महिला नहीं होती ।
एक बार एक विदेशी ने महात्मा गांधी से पूछा - "भारतीय महिलाएं ही अच्छे पति की आकांक्षा से उपवास क्यों करती हैं, अच्छी पत्नी के लिए पुरुष क्यों नहीं करते ?" महात्माजी ने कहा – “पत्नियां कभी बुरी नहीं होतीं, पति कभीकभी बुरे भी होते हैं, अतः महिलाएं ही उपवास करती हैं ।"
महात्मा गांधी का उक्त विश्वास महिलाओं की क्षमता के अनुरूप ही है । उस क्षमता को जागरूक रखकर ही समाज या राष्ट्र की उन्नति को सुरक्षित किया जा सकता है ।
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