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________________ समाज के निर्माण में महिलाओं की भूमिका समाज की गाड़ी के दो चक्के हैं-पुरुष और नारी । एक चक्के से गाड़ी नहीं चलती। दो चक्के आवश्यक और अनिवार्य हैं। दोनों समान और सबल होने चाहिए। असमान और निर्बल चक्के गति में साधक न होकर बाधक ही बनते ___आज के परिप्रेक्ष्य में भारतीय समाज में नारी की स्थिति के विषय में सोचा जाता है तो लगता है कि वह चक्का बराबर नहीं है । ज्ञान, कार्य एवं अधिकार आदि सभी क्षेत्रों में उसे आगे बढ़ने की आवश्यकता है। परम्पराओं और वैधानिक स्थितियों में परिवर्तन अवश्य आया है। उसका कुछ-कुछ लाभ भी सामने आने लगा है, परन्तु अभी तक बहुत बड़ा क्षेत्र अनवगाहित पड़ा है। महिलाओं के प्रति सामाजिक चिन्तन में निश्चित ही अन्तर आया है, परन्तु कार्य परिणति के क्षेत्र में उसकी गति इतनी मन्द रही है कि वह अगति का सन्देह उत्पन्न करती है। उदाहरण के लिए पर्दा-प्रथा को लिया जा सकता है । कुछ वर्ष पूर्व आचार्यश्री ने इस प्रथा के उन्मूलन पर काफी बल दिया था। उस समय लगता था कि यह प्रथा अब कुछ ही वर्षों में नामशेष हो जायेगी। परन्तु ऐसा नहीं हो पाया। जोश के प्रथम प्रवाह के निकल जाने के पश्चात् वही पुरानी उदासी छा गई। इसीलिए अनेक नगरों की धर्म-परिषद् की ओर जब देखता हूं तब अधिकांश महिलाएं अवगुंठनवती ही दृष्टिगत होती हैं। सोचता हूं कि जो परिवर्तन आया, वह सामयिक जोश का ही प्रतिफल था। चिन्तनपूर्वक विचारों में जो परिवर्तन अपेक्षित था, वह अभी तक फलित नहीं हुआ है । सामयिक जोश तो बरसाती नाले से अधिक कोई महत्त्व नहीं रखता। सीमित समय के पश्चात् अवरुद्ध हो जाना ही उसकी नियति होती है । सुचिंतित जोश वास्तविक होता है । उसमें सदातोया नदी के समान निरन्तरता होती है। ___ मृतक के पीछे लम्बे समय तक शोक की बैठक करते रहना, गंगा में फूल डलवाना, विवाहादि अवसरों पर अनेक रूढ़ियों को प्रश्रय देना आदि सामाजिक दोष मर-मरकर वापस जीवित होते रहते हैं, इनसे भी यही सिद्ध होता है कि प्रत्येक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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