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१३२ चिन्तन के क्षितिज पर
प्रसुप्तावस्था समाज के लिए जहां एक भयंकर अभिशाप होती है, वहां उसके जागरण की अवस्था एक महनीय वरदान। यदि यह वरदान अणुव्रत आन्दोलन के माध्यम से समाज को प्राप्त होता है, तो इससे जहां रूढ़ि-मुक्त और सुचरित्र समाज के निर्माण का कार्य बहुत आगे बढ़ सकेगा, वहां स्वयं आन्दोलन के कार्य को भी नये क्षितिज और नये आयाम प्राप्त होंगे ।
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