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________________ अणुव्रत आन्दोलन और नारी-समाज १३१ ने सहस्रों व्यक्तियों को शराब, तम्बाखू, द्यूत आदि दुर्व्यसनों से मुक्त किया है। व्यापार-क्षेत्र में मिलावट, गलत माप-तौल आदि के विरुद्ध वातावरण बनाया है। इसमें भी सहस्रों व्यक्तियों ने स्वयं को इन दोषों से मुक्त किया है। सामाजिक क्षेत्र में भी अनेक सुधार हुए हैं। जन्म, विवाह और मृत्यु के समय की अनेक परम्पराओं में परिवर्तन आया है। अस्पृश्य भावना की जकड़ काफी अंशों में शिथिल हुई है । भावना की गहराइयों तक छाई हुई पर्दा-प्रथा का भी उन्मूलन प्रारम्भ हो चुका है । कुछ कार्य वैयक्तिक स्तर पर और कुछ सामूहिक स्तर पर प्रगति कर रहे हैं। यह सब जहां आन्दोलन की सफलता कही जा सकती है, वहां यह असफलता भी स्पष्ट दिखाई देती है कि इतने वर्षों के प्रयास के बावजूद अभी तक सुधार का चक्र स्वयं चालित नहीं हो पाया है। सुधार के प्रेरकों में जितनी जागरूकता और उत्कंठा है, उतनी सुधार के पात्रों में दिखाई नहीं दे रही है। सामयिक वेग जितना कुछ करवा जाते हैं, उतना ही हो पाता है, उसके पश्चात् फिर सभी ओर मौन छा जाता है । वेग का सातत्य प्रायः टिक नहीं पाता। इस असफलता को, जो कि ऐसे कार्यों के मार्ग में बहुधा आया ही करती है, सफलता में बदलने का मार्ग खोज निकालने के प्रयास में स्वयं आचार्यश्री लगे हुए हैं। उनका प्रयास प्रायः सफलता का ही पर्यायवाची हुआ करता है, अत. कहा जा सकता है कि उन्होंने वेग उत्पन्न किया है, तो उसमें सातत्य की व्यवस्था भी वे कर सकेंगे। इतना होने पर सुधार के चक्र में स्वयं चालितता भी आ जायेगी। आन्दोलन के लिए एक यह बात भी विशेष ध्यान देने की है कि इसमें अभी तक नारी-समाज की शक्ति यथेष्ट नहीं लग पायी है। यद्यपि नारी-वर्ग में चेतना जरूर आई है, वृत्तियों में अनेक परिवर्तन भी हुए हैं, परन्तु उनमें से अधिकांश या तो किसी विवशता से फलित हुए हैं या फिर श्रद्धातिरेक से । स्वयं के जागृत विवेक से फलित होने वाले परिवर्तन नगण्य जैसे हैं । स्वर्णाभूषणों का व्यामोह अभी उनके मन से हट नहीं पाया है। सादी वेष-भूषा और सात्त्विक खान-पान से अभी उन्हें अपने गौरव का समाधान नहीं मिल पाता। मुंह पर से पर्दा हटा देने से किसी प्रकार की शालीनता या लज्जा की मर्यादा का भंग नहीं होता, यह विचार अभी तक उनमें यथेष्ट व्यापकता नहीं ले पाया। अज्ञान और रूढ़ियों के घेरे से बाहर निकलने की व्याकुलता होने पर भी तदनुकूल अपेक्षित साहस अभी कोसों दूर प्रतीत होता है। ये ही कुछ कारण कहे जा सकते हैं कि जिससे समाज के इस महत्त्वपूर्ण अर्धांश का सहयोग अणुव्रत आन्दोलन को खुलकर नहीं मिल पाता है। नारी-समाज जिस दिन आन्दोलन की भावना को विवेक पूर्वक हृदयंगम कर लेगा और उसमें अपनी शक्ति लगानी प्रारम्भ कर देगा, उस दिन मानना चाहिए कि अणुव्रत आन्दोलन एक बहुत बड़ी मंजिल तय कर लेगा। नारी के विवेक की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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