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१२६ चिन्तन के क्षितिज पर
अर्जित की जाये या अन्यथा भी, यही आज का मुख्य प्रश्न है । जो लोग हिंसा में विश्वास करते हैं, वे लूट-खसोट से, मार-धाड़ से, दूसरों को आतंकित करते हैं । सुख-समृद्धि को बांटने के बजाय लूट लेना चाहते हैं, नव-सर्जन के स्थान पर विनाश करते हैं । वे अपने पौरुष का दुरुपयोग करते हैं। उनके उस पौरुष का सदुपयोग हो सकता है, यदि वे नव-निर्माण में लगें । उत्थान और समृद्धि विनाश से नहीं, नव-सर्जन से उत्पन्न होती है । आदमी का पौरुष तोड़ने में नहीं, जोड़ने में लगना चाहिए । यही अणुव्रत आन्दोलन की भावना का मूल है ।
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