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मर्यादा-महोत्सव : सांस्कृतिक पर्व
मर्यादा-महोत्सव तेरापंथ का एक सांस्कृतिक पर्व है। हर धर्म तथा समाज में विभिन्न आधारों पर विभिन्न पर्व मनाये जाते हैं, परन्तु 'संविधान' के आधार पर कहीं कोई पर्व मनाया जाता हो, ऐसा सुनने तथा देखने में नहीं आया । जैन धर्म की शाखा 'तेरापंथ' ही एक ऐसा संगठन है, जो अपने संविधान की पूर्ति के उपलक्ष्य में शताब्दी से भी अधिक समय से ऐसा पर्व मनाता आया है । इस धर्मसंघ के संस्थापक आचार्य भिक्षु ने एकता और पवित्रता बनाये रखने के लिए जो नियम बनाये, उनका उन्होंने 'मर्यादा' नामकरण किया। युग की भाषा में आज हम उसे 'संविधान' कह सकते हैं । इस संविधान की सम्पन्नता माघ शुक्ला सप्तमी को हुई थी, अत: प्रति वर्ष उसी दिन उसकी पुण्य-स्मृति में मर्यादा-महोत्सव नाम से यह पर्व मनाया जाता है । राष्ट्र के वर्तमान वातावरण के परिप्रेक्ष्य में मर्यादामहोत्सव जैसे पर्व की बात निश्चय ही एक अजीब और असामयिक प्रवृत्ति लग सकती है, परन्तु साथ ही यह उतनी ही आशाप्रद भी कही जा सकती है । जहां चारों ओर से मर्यादा भंग की ही घटनाएं सुनने को मिलती हों, राजनेताओं से लेकर विद्यार्थियों तक सभी तबकों के लोग जहां संघटन के स्थान पर विघटन में ही अपनी शक्ति लगा रहे हों और जहां धन-जन की सुरक्षा आशंकाओं के घेरे में पड़ी हो, वहां मर्यादा या कानून की याद दिलाने वाला यह पर्व मार्ग-दर्शन का कार्य कर सकता है।
यह पर्व भारतवर्ष की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का एक मूर्त प्रतीक है। समान आचार, समान विचार और समान चिन्तन की भूमिका का निर्माण करने में इस पर्व ने बहुत बड़ा कार्य किया है । श्रमण-संघ में जिस समय अनेक शिथिलताओं ने घर कर लिया था, उस समय उनके निराकरण और सम्यक् आचार के संस्थापन तथा संरक्षण के लिए इस पर्व की आधारभूत मर्यादाओं का निर्माण हुआ था। ___ संगठन छोटा हो चाहे बड़ा, राजनीतिक हो चाहे धार्मिक, उसे सुव्यस्थित चलाने के लिए अनुशासन की और अनुशासन के लिए नियमों की आवश्यकता
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