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११८ चिन्तन के क्षितिज पर
उपर्युक्त मर्यादाओं ने श्रमण-संघ को सामूहिक जीवन की दिशाएं तो प्रदान की ही, सबलता और प्रगति के द्वार भी खोले । वर्तमान में इस संघ के सुचारु संचालन का दायित्व नवम अधिशास्ता आचार्यश्री तुलसी के कंधों पर है। वे स्वयं मर्यादाओं का परिपूर्ण पालन करते हैं, अतः दूसरों को उस विषय में मार्ग-दर्शन देने के अधिकारी भी हैं। मर्यादा-महोत्सव के इस पुनीत पर्व पर वे अपने अनुयायियों की मर्यादानुवर्तिता का निरीक्षण-परीक्षण तथा मार्गदर्शन तो करते ही हैं, साथ ही समग्र देश की जनता को भी मर्यादा के प्रति सजग और निष्ठाशील बनाने का प्रयास करते रहना अपना कर्त्तव्य मानते हैं। .. भारतीय जनता स्वभावतः मर्यादापालक रही है, परन्तु वर्तमान की कलुषित राजनीति, दलीय स्वार्थों के अंधे व्यामोह तथा भ्रान्त मंत्रणाओं एवं धारणाओं ने उसे पथ से विचलित कर दिया है। ऐसी विपन्नावस्था में संतजनों का ही कार्य है कि उसे मार्गस्थ करने का भार वे स्वयं अपने कंधों पर लें। इस कार्य से जहां भारतीय जनता का कल्याण होगा, वहां मर्यादा-महोत्सव जैसे आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक पर्व की सार्थकता को भी चार चांद लग जाएंगे।
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