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एकता और अनुशासन का प्रतीक : तेरापंथ ११५ जाने की आशा में उसे गौण कर दो, क्योंकि तुम सर्वज्ञ नहीं हो, अतः तुम्हें जो लग रहा है, वही सत्य है, औरों का अनुभव असत्य है, ऐसा आग्रह करने का कोई कारण नहीं है । जो इन तीनों में से किसी भी उपाय को स्वीकार नहीं कर सकता। उसके लिए स्वामीजी ने कहा है कि उसे संघ से पृथक् हो जाना चाहिए, आत्मवंचनापूर्वक संघ में रहने का कोई लाभ नहीं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रतिवर्ष आषाढी पूर्णिमा के दिन तेरापंथ अपना स्थापना दिवस मनाता है। वर्तमान में उसके अनुशास्ता हैं-आचार्यश्री तुलसी। वे इस संघ के नवम आचार्य हैं । इस समय सात-सौ से अधिक साधु-साध्वियां उनके निर्देश से समग्र भारत में विहार कर रही हैं। जन-जीवन में धार्मिक संस्कार भरना, दुर्व्यसनमुक्ति, अहिंसक आचार-व्यवहार, आमिष भोजन का परित्याग, असांप्रदायिक भाव से जन-जन को अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से नैतिकता और सदाचार की प्रेरणा देना उन सबका लक्ष्य होता है। __ आचार्यश्री तुलसी ने अपनी पदयात्राओं से प्रायः समग्र भारत का भ्रमण किया है। लाखों व्यक्तियों को उन्होंने व्यसन-मुक्त किया है । अणुव्रत आंदोलन के रूप में जन-जन तक उनकी आवाज पहुंची है। राष्ट्रति-भवन से लेकर गरीब की झोंपड़ी तक उनका निर्बाध प्रवेश है।
तेरापंथ ने आज तक व्यसन-मुक्ति और धार्मिक संस्कार-दान के रूप में जनसेवा की है, भविष्य में भी वह और तीव्र गति से की जाती रहेगी, ऐसी उससे आकांक्षा की जा सकती है ।
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