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________________ युग-परिप्रेक्ष्य में मर्यादा-महोत्सव वर्तमान युग को समस्या-संकुल युग कहा जा सकता है । जिधर भी दृष्टिक्षेप किया जाता है उधर अनेकानेक समस्याएं सुरसा की तरह मुंह बाये दृष्टिगत होती हैं। सामान्य जन-जीवन से लेकर अध्यात्म-जगत् तक में समस्याओं की कड़ियां आगे से आगे जुड़कर ऐसी सुदृढ़ शृंखला बन गयी हैं, जिसके बन्धन से बचकर रह पाना प्रायः असम्भव-सा बन गया है । यही कारण है कि आज छात्रों से लेकर नेताओं तक में अनुशासनहीनता की एक अवर्जनीय होड़ लगी हुई है । व्यक्तियों, संस्थाओं और जातियों आदि में अपनी-अपनी पृथक् पहचान की अंधी आतुरता इतने भयंकर अविवेक तक पहुंच चुकी है कि उससे राष्ट्रहित के भी खण्डित होने का भय होने लगा है। हर समस्या को अपनी ही धारणा के अनुकूल हल करने की ललक ने हिंसा और आतंक का ऐसा तांडव नृत्य प्रारम्भ कर दिया है कि हर चिन्तक किंकर्तव्य-विमूढ़ दिखाई देने लगा है । भ्रातृत्व, मैत्री और पारस्परिकता की सहस्रों-सहस्रों वर्षों के आचरण से सुपुष्ट की गयी परम्परा की धज्जियां उड़ा देने के लिए इस समय हर किसी के हाथ मानो अकुला रहे हैं । इन सब स्थितियों को देखकर यही प्रतीत होता है कि आज के प्रायः सभी सक्रिय हाथ अपनी-अपनी पहुंच तक मर्यादा की पांचाली के चीरहरण की प्रक्रिया में जुड़े हुए हैं। युग के इस परिप्रेक्ष्य में जब कहीं मर्यादा के उपलक्ष्य में कोई महोत्सव मनाया जाता है तो वह किसी आश्चर्य से कम नहीं होता । लगता है किसी कृष्ण का अदृश्य हाथ आज भी मर्यादा की उस पांचाली की लाज बचाने को कृत-प्रतिज्ञ है। इससे एक प्रबल आशा एवं विश्वास के जागरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो सकती है। तेरापंथ में मर्यादा-महोत्सव प्रतिवर्ष मनाया जाता है। अन्य महोत्सवों की तरह यह कोई आमोद-प्रमोद, नृत्य-संगीत, भोज या भाषणबाजी का उत्सव नहीं है । यह तो विशुद्ध कर्त्तव्य-बोध का प्रेरक उत्सव है । इसमें कर्त्तव्य-बुद्धि के आधार पर पवित्रता, एकता और नियमानुवर्तिता की आत्म-स्वीकृत प्रतिबद्धता को यथावत् सुरक्षित रखने के संकल्प को सामूहिक रूप से दुहराया जाता है। यह महोत्सव तेरापंथ के संविधान-पूर्ति-दिवस के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष पूर्व घोषित स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003140
Book TitleChintan ke Kshitij Par
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1992
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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