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११२ चिन्तन के क्षितिज पर
चौमासा मांहे जे महीनो बधै तो,
- जै बधै ते मास तणा दिन धार । गुणपच्चास गुणंतर माहें न गिणवा,
ते लुंड महीनो न गिणवो लिगार ॥५४।। दोय श्रावण हुवै तो दूजा श्रावण में,
संवत्सरी करणी नहीं सोय । दोय भाद्रवा हुवै तो दूजा भाद्रवा में,
संवत्सरी करणी नहीं कोय ॥५५॥ इसका फलितार्थ संक्षेप में निम्नोक्त प्रकार से कहा जा सकता है१. संवत्सरी पर्व से पूर्व ४६ या ५० दिन तथा बाद में ६६ या ७० दिन रहने
चाहिए। २. किसी वर्ष चातुर्मास काल के तीन महीने २६ दिन के तथा एक महीना ३० दिन का होने से ११७ दिन का ही काल रहता है। उसमें ४६ दिन से संवत्सरी की जाए, तो पीछे ६८ दिन शेष रहते हैं और यदि पीछे ६६ दिन रखे जाएं, तो पहले ४८ दिन ही रह पाते हैं। उस स्थिति में आषाढ़ शुक्ला १४ को चातुर्मासिक पाक्षिक दिन करना चाहिए और आषाढ़ पूर्णिमा का दिन मिलाकर ४६ दिन से संवत्सरी की जानी चाहिए। इस क्रम से पीछे भी ६६ दिन रह
जाते हैं। ३. वर्षाकाल में अधिकमास हो, उसे गिना न जाए। दो श्रावण हों, तो दूसरे
श्रावण के दिनों की गणना पूर्व के ४६ या ५० दिनों में न की जाए और भाद्रपद में संवत्सरी की जाए। दूसरे भाद्रपद के दिनों को अगले ६६ या ७० दिनों की गणना में न लिया जाए।
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