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११० चिन्तन के क्षितिज पर
को और किसी ने अधिमास को अगणनीय मानकर पर्व मनाने की परम्परा चालू की । तिथियों की घटा-बढ़ी में मतभेद होने के कारण इसके साथ एक दुर्भाग्य और जुड़ गया कि कभी यह पर्व चतुर्थी को मनाया जाने लगा, तो कभी यह पर्व पंचमी को। किसी परम्परा द्वारा इसके लिए केवल चतुर्थी ही नियत कर दी गई तो किसी के द्वारा केवल पंचमी ही। किसी ने सूर्योदय के समय की तिथि को ही मान्यता दी तो किसी ने घटिका प्राप्त तिथि को। __ यद्यपि अधिमास या मलमास जैनागमों में भी स्वीकृत हुआ है, परन्तु वहां उसके लिए पौष और आषाढ़--ये दो महीने ही निश्चित हैं, अन्य कोई महीना अधिमास नहीं होता है। चन्द्र-प्रज्ञप्ति सूत्र में ५ वर्ष के एक युग में ६२ मास होने का उल्लेख है। इससे स्पष्ट है कि वहां ५ वर्ष में दो अधिमास गिने गए हैं। अन्यथा वर्ष के १२ मास होने के हिसाब से तो केवल ६० मास ही होने चाहिए। इस क्रम से प्रत्येक ढाई वर्ष के पश्चात् अर्थात् ३० माह के पश्चात् एक मास अधिक होता है। जैन गणना में श्रावण प्रतिपदा से नव वर्ष आरम्भ होता है, अत: ५ वर्ष के युग में ३१वां मास पौष और ६२वां मास आषाढ़ अधिमास होता है। जब आषाढ़ दो होते हैं, तब द्वितीय आषाढ़ की पूर्णिमा को चातुर्मासिक पाक्षिक दिन होता है और तब से चार महीने तक अर्थात् कार्तिक पूर्णिमा तक वर्षाकाल माना जाता है ।
वर्षा-काल में अधिमास की परम्परा जैन क्रम से तो मान्य ठहरती नहीं, परन्तु वह अन्यत्र भी सम्भवतः पीछे से ही आई। आचार्य चाणक्य ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ 'अर्थशास्त्र' में अधिमास का विचार किया है । उससे तो यही सिद्ध होता है कि उस समय भी ग्रीष्म और हेमन्त ऋतु में मलमास किया जाता था। वे लिखते हैं---
दिवसस्य हरत्येक षष्टि भागमृतो सतः करोत्येकं महच्छेदं तथैवैकं च चन्द्रमाः एवमर्ष तृतीयानामष्टानामधिमासकम्
ग्रीष्मे जनयत: पूर्व पंचान्दान्ते च पश्चिमम् । सूर्य प्रतिदिन दिन के ६०वें हिस्से अर्थात् एक घटिका का छेद कर लेता है। इस तरह एक ऋतु में आठ घटिका यानी एक दिन अधिक बना देता है । इस प्रकार एक साल में ६ दिन, दो साल में १२ दिन और ढाई साल में १५ दिन अधिक बना देता है। इसी तरह चन्द्रमा भी प्रत्येक ऋतु में एक-एक दिन कम करता चला जाता है और ढाई साल में १५ दिन की कमी हो जाती है। यानी ढाई साल में सौर और चान्द्र गणना के अनुसार दोनों में एक महीने बाद ग्रीष्म ऋतु में प्रथम मलमास या अधिमास और पांच साल के बाद हेमन्त ऋतु में एक अधिक मास को सूर्य और चन्द्रमा उत्पन्न करते हैं । ढाई साल में इनकी गणना में जो एक महीने का भेद पड़ जाता है, उसे पहले ग्रीष्म और पीछे हेमन्त ऋतु में क्रमशः एक महीना और अधिक
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