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१६ चिन्तन के क्षितिज पर
उपकरणों से देखा जाता है। परन्तु इससे यह नहीं समझ लेना चाहिए कि सारे पुद्गल दृष्टि-ग्राह्य ही होते हैं । बहुत सारे पुद्गल, अनन्त परमाणुओं के पिण्डीभूत स्कंध होने पर भी न दृष्टि-ग्राह्य होते हैं और न यंत्र-ग्राह्य ही । पुद्गलों की यह दृश्यता और अदृश्यता वास्तव में उनके परिणति-भेद से सम्बद्ध होती है । पुद्गल की परिणति दो प्रकार की मानी जाती है—सूक्ष्म और बादर (स्थूल)।
सूक्ष्म परिणति वाले पुद्गल अनन्तानन्त स्कंधों के रूप में एकत्रित होने पर भी तब तक दिखाई नहीं दे सकते, जब तक कि उनकी स्थूल परिणति नहीं हो जाती । सूक्ष्म परिणति वाले पुद्गलों में प्रथम चार स्पर्श मिलते हैं, अत: उन्हें चतुःस्पर्शी कहा जाता है। वे जब सूक्ष्म-परिणति से हटकर स्थूल-परिणति में आते हैं, तब उसके साथ ही उनमें उत्तरवर्ती चार स्पर्शों की भी अभिवृद्धि हो जाती है। वे फिर अष्ट स्पर्शी स्कंध कहलाते हैं। ये स्पर्श पूर्ववर्ती चार स्पर्शों के सापेक्ष संयोग से बनते हैं, जैसे----रूक्ष स्पर्शी परमाणुओं के बाहुल्य से लघुस्पर्श, स्निग्ध स्पर्शी परमाणुओं के बाहुल्य से गुरु स्पर्श, शीत व स्निग्ध स्पर्शी परमाणुओं के बाहुल्य से मृदु स्पर्श और उष्ण व रूक्ष स्पर्शी परमाणुओं के बाहुल्य से कर्कश स्पर्श बनता है। ___ इनके अतिरिक्त शब्द, बन्ध, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत आदि सभी पुद्गलों की ही विभिन्न परिणतियां हैं। संसार में न कभी एक परमाणु घटता है और न कभी एक बढ़ता है, केवल उनकी विभिन्न परिणतियों के कारण ही दृश्य जगत् की सारी उथल-पुथल होती रहती है।
पुद्गलों का परिणमन जब किसी प्रकार की बाह्य प्रेरणा के बिना स्वभावतः होता है, तब वे वैस्रसिक कहलाते हैं। जीव के प्रयोग से शरीरादि रूप में परिणत पुद्गल प्रायोगिक और जीव मुक्त होने पर भी जिनका प्रायोगिक परिणमन जब तक नहीं छूटता तब तक वे पुद्गल अथवा जीव प्रयत्न और स्वभाव-दोनों के संयोग से परिणत पुद्गल मिश्र कहलाते हैं । जीव के साथ सम्बद्ध पुद्गल पुद्गल का अन्य पुद्गल के साथ तो मिलन होता ही है, परन्तु इसके अतिरिक्त जीव द्वारा भी उसका ग्रहण किया जाता है। जीव अपनी विभिन्न क्रियाओं के द्वारा पुद्गलों को आकृष्ट करता है, तब वे उसके साथ संलग्न होते हैं और उसे अनेक प्रकार से प्रभावित करते हैं। पुद्गलों पर जीवों के और जीवों पर पुद्गलों के विभिन्न प्रभावों के परिणामस्वरूप ही सृष्टि की सारी विचित्रताएं घटित होती रहती हैं । जीव के साथ सम्बन्ध होने योग्य पुद्गलों को मुख्यतः आठ वर्गणाओंश्रेणियों में विभक्त किया जाता है
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