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पुद्गल : एक विवेचन ९५ प्रदेश और परमाणु जहां दो भेद किये गये हैं, वहां स्कंध, देश और प्रदेश को नौ परमाणु पुद्गल में ही समाहित कर लिया गया है । मूलतः परमाणु को ही वास्तविक पुद्गल कहना चाहिए । शेष भेद तो परमाणु की ही विशिष्ट अवस्थाओं पर आधृत हैं । निर्विभागी पुद्गल को परमाणु कहा जाता है । वह पुद्गल का सबसे छोटा रूप होता है । निरंश होने के कारण उसे अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य कहा जाता है ।
अनेक परमाणु पुद्गलों के एकीभूत पिण्ड को स्कंध कहा जाता है । ये पिण्ड दो से लेकर अनन्त परमाणुओं तक के हो सकते हैं । स्कंधों के संघात तथा विघात से भी ये स्कंध बनते हैं ।
स्कंध के कल्पित विभाग को देश और स्कंध से अपृथग् भूत-अविभागी अंश प्रदेश कहा जाता है । प्रदेश और परमाणु में केवल स्कंध से अपृथग्-भाव और पृथग्-भाव का ही अन्तर है ।
पुद्गल के गुण
पुद्गल के मूलतः चार गुण हैं— स्पर्श, रस, गंध और वर्ण । उपभेदों के आधार पर निम्नोक्त प्रकार से ये बीस हो जाते हैं ।
स्पर्श--- शीत, उष्ण, रुक्ष, स्निग्ध, लघु, गुरु, मृदु और कर्कश ।
रस – आम्ल, मधुर, कटु, कषाय और तिक्त ।
गंध---सुगंध और दुर्गंध ।
वर्ण - कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत ।
प्रत्येक पुद्गल चाहे वह परमाणु रूप हो और चाहे स्कंध रूप, उपर्युक्त चारों गुणों और अनन्त पर्यायों से युक्त ही होता है । एक परमाणु में कोई भी एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श (शीत-उष्ण और स्निग्ध- रूक्ष, इन दोनों युगलों में से एक-एक ) होते हैं । प्रत्येक परमाणु में वर्णान्तर, गंधान्तर, रसान्तर और स्पर्शान्तर होता रहता है । स्कंध के लिए भी यही नियम है । यह परिवर्तन कम-सेकम एक समय के पश्चात् भी हो सकता है, परन्तु अधिक से अधिक असंख्यकाल के पश्चात् तो अवश्यम्भावी है ।
पुद्गल की परिणतियां
इस संसार में जो भी कुछ इन्द्रियग्राह्य हैं, वे सब पुद्गल की ही विविध परिणतियां हैं। इस जगत् के घटक द्रव्यों में पुद्गल के अतिरिक्त और कोई भी द्रव्य चक्षुर्ग्रा नहीं है । मात्र एक पुद्गल द्रव्य ही ऐसा है, जो आंखों या यांत्रिक
१. उत्तराध्ययन, ३६-१०
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