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मरण-प्रविभक्ति ९३
स्वीकार नहीं कर पाते । ऐसे व्यक्ति न जीवन के रहस्य को पहचानते हैं और न मरण के । ऐसे लोगों के लिए यही कहा जा सकता है—'यज्जीवति तन्मरणं, यन्मरणं सास्य विश्रान्तिः' अर्थात् उनका वह निस्तेज जीवन ही उनके व्यक्तित्व का मरण है। उसके बाद जो उनका शरीर-पात होता है, वह तो मात्र उनकी विश्रान्ति है।
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