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बोधि-दुर्लभ भावना
__ मनुष्य का जन्म दुर्लभ है और बोधि उससे अधिक दुर्लभ है। यहूदी सन्त मौनीज के मृत्यु की वेला सन्निकट थी। पुरोहित पास में खड़ा मन्त्र पढ़ रहा था। उसने कहा-'मूसा का स्मरण करो, यह अन्तिम क्षण है।' मौनीज ने आंखें खोली और कहा, 'हटो यहां से। मेरे सामने नाम मत लो मुसा का।' पुरोहित को आश्चर्य हुआ, सब देखते रह गए। यह कैसी बात ! पुरोहित ने कहा-'जीवन भर जिनका गीत गुनगुनाया, हजारों लोगों को सन्देश दिया और अब यह क्या कह रहे हो ? जिन्दगी की सारी प्रतिष्ठा धूल में मिला रहे हो ?' मौनीज ने कहा, 'मैं जानता हूं। किन्तु अभी प्रश्न वैयक्तिक है। मूसा यह नहीं पूरेगा कि तुम मूसा क्यों नहीं हुए, वह पूछेगा कि तुम मौनीज क्यों नहीं
हुए ?'
स्वयं का होना बोधि है। जीवन में सब कुछ पाकर भी जिसने बोधि नहीं पाई, उसने कुछ नहीं पाया और बोधि पाकर जिसने और कुछ नहीं पाया उसने सब कुछ पा लिया। मरने के बाद सब कुछ छूट जाता है, खो जाता है, वह हमारी अपनी सम्पत्ति नहीं है। संबोधि अपनी सम्पत्ति है, उसे खोजना है। अनेक-अनेक योनियों में जन्मे और मरे, किन्तु स्वयं के अस्तित्व को नहीं पहचाना। जन्म के पूर्व और मरने के बाद भी जिनका अस्तित्व अखण्ड रहता है, उसकी खोज में निकलना बोधि भावना का अभिप्राय है। आचार्य शुभचन्द्र ने लिखा है-'भावनाओं में रमण करता हुआ साधक इसी जीवन में दिव्य मुक्तानन्द का स्पर्श कर लेता है। उसकी कषायाग्नि शांत हो जाती है, पर-द्रव्यों के प्रति जो आसक्ति है वह नष्ट हो जाती है, अज्ञान का उन्मूलन होता है और हृदय में बोध-प्रदीप प्रज्वलित हो जाता है।' बोधि-सम्पन्नता
सम्यक्त्व या सही दृष्टिकोण की प्राप्ति बोधि-सम्पन्नता का पहला सोपान है। जो व्यक्ति सम्यक्त्व पा लेता है. वह साधना में अग्रसर होता हुआ बोधि से संपन्न हो जाता है।
सम्युगदृष्टि व्यक्ति के पांच लक्षण हैं१. आस्तिक्य-आत्मा, कर्म आदि में विश्वास । २. शम-क्रोध आदि कषायों का उपशमन ।
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