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लोक-संस्थान भावना
सकती हैं। तुम भीतर चले जाओ, चेतना के जगत् में चले जाओ, चेतना का नैकट्य प्राप्त कर लो, सुरक्षित हो जाओगे, पूर्ण सुरक्षित । कोई खतरा नहीं कोई भय नहीं । यह ज्वलंत शक्ति है । इसका अनुभव किया जा सकता है ।
कछुए की उपमा साधक के लिए गीता, बुद्ध वचन, महावीर वाणी आदि में सर्वत्र प्रयुक्त हुई है। कछुआ भयभीत स्थान में तत्काल अपने अंगों को समेट कर सुरक्षित हो जाता है ।
साधक के लिए कछुए की वृत्ति आवश्यक है । वह अपनी प्रवृत्तियों को सतत समेटे रखे। बाहर भय ही भय है। जहां भी अनुपयुक्त - प्रमत्त हुआ कि बंधा । मुक्ति के लिए अप्रमत्तता आवश्यक है
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