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संवर भावना
समस्या, मकान या कपड़े की समस्या को सरकार सुलझाने में सक्षम होती है। किन्तु मन और इन्द्रियों की समस्या को कोई नहीं सुलझा पाता। इन समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है केवल व्यक्ति की अपनी समाधि। दूसरा कोई उपाय नहीं है।
समस्या का अर्थ है-आस्रव और समाधि का अर्थ है-संवर। समस्या का अर्थ है मूर्छा और समाधि का अर्थ है-चैतन्य का अनुभव। एक बात है, यदि मूर्छा नहीं होती तो आदमी दुनिया में जी नहीं पाता। हर व्यक्ति मूर्छा से जुड़ा हुआ है, इसलिए वह जी रहा है। हमारे शरीर की एक व्यवस्था है। शरीर में जब तक कष्टों को झेलने की क्षमता होती है तब तक वह जागृत रहता है। जब कष्ट अधिक बढ़ जाता है, शरीर उसे झेलने में असमर्थ होता है तब आदमी मूञ्छित हो जाता है। जब भयंकर बीमारी, अवसाद और कष्ट होता है तब आदमी तत्काल मूर्छा में चला जाता है। यह प्रकृति की अपनी व्यवस्था है कि जागृत रहकर आदमी उतने कष्ट झेल नहीं सकता, इसलिए उसे मूर्च्छित कर दो। या तो शरीर उसे स्वयं मूञ्छित कर देता है या फिर डॉक्टर उसे बाहरी साधनों से मूच्छित कर देता है।
मूच्र्छा असमाधि है, समस्या है। चैतन्य का अनुभव समाधि है। सोना समस्या है और जागना समाधि। हम सोते हैं, यह सबसे बड़ी समस्या है। हम जागते हैं, यह समाधि है। चैतन्य का अनुभव समाधि है। जागरण समाधि है, संवर समाधि है। संयम
हमारे भीतर शक्ति का अनंत कोष है। उस शक्ति का बहुत बड़ा भाग ढका हुआ है, प्रतिहत है। कुछ भाग सत्ता में है और कुछ भाग उपयोग में आ रहा है। हम अपनी शक्ति के प्रति यदि जागरूक हों तो सत्ता में रही हुई शक्ति और प्रतिहत शक्ति को उपयोग की भूमिका तक ला सकते हैं।
शक्ति का जागरण संयम के द्वारा किया जा सकता है। हमारे मन की अनेक मांगें होती हैं। हम उन मांगों को पूरा करते चले जाते हैं। फलत: हमारी शक्ति स्खलित होती जाती है। उसके जागरण का सूत्र है-मन की मांग का अस्वीकार। मन की मांग के अस्वीकार का अर्थ है-संकल्प-शक्ति का विकास। यही संयम है। जिसका निश्चय (संकल्प या संयम) दृढ़ होता है, उसके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं होता।
शुभ और अशुभ निमित्त कर्म के उदय में परिवर्तन ला देते हैं, किन्तु मन का संकल्प उन सबसे बड़ा निमित्त है। इससे जितना परिवर्तन हो सकता है उतना
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