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________________ अशौच भावना ५३ केन्द्र को दबाकर प्राण को अजस्र प्रवाहित किया जाता है। कहां से दबाना है? कैसे दबाना है ? ये सारी बातें इस पद्धति में निष्णात व्यक्ति जानते हैं। इस शरीर में सारे रहस्य भरे पड़े हैं। इनमें सैकड़ों-सैकड़ों केन्द्र और आयतन हैं तथा सैकड़ों-सैकड़ों विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र हैं। इन केन्द्रों का विकास कर व्यक्ति अपने ज्ञान का विकास कर सकता है, स्मृति और संकल्प-शक्ति का विकास कर सकता है, शक्ति और आनन्द का विकास कर सकता है और अनेक अनबुझी पहेलियों को सुलझा सकता है। शरीर का वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक मूल्य प्रेक्षा-ध्यान के सन्दर्भ में शरीर को समझने पर बहुत बल दिया गया है। जो व्यक्ति शरीर के रहस्यों को नहीं जानता, वह धर्म को ठीक से नहीं जान पाता। जिस व्यक्ति को साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ना है, अपनी शक्ति और चेतना का विकास करना है, उसे शरीर के रहस्यों को जानना ही होगा, दूसरा कोई उपाय नहीं है। जब व्यक्ति शरीर की शक्ति से परिचित हो जाता है, फिर आत्मा की शक्ति में कोई संदेह नहीं रहता। हमारे शरीर में ऐसे केन्द्र हैं, जिनसे काम और वासना बढ़ती है, राग और द्वेष बढ़ता है। दूसरी ओर शरीर में ऐसे भी केन्द्र हैं जिनका विकास करने पर, कामना और वासना घटती है, कामना और वासना का परिष्कार होता है तथा राग और द्वेष का विलय होता है। अभ्यास करते-करते, शरीर के केन्द्रों का परिष्कार करते-करते, उनका उपयोग करते-करते एक बिन्दु ऐसा आता है कि चेतना का ऊर्वारोहण, ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन हो जाता है, सारी चेतना और ऊर्जा हमारे मस्तिष्क के दाएं भाग में आ जाती है। मस्तिष्क का दायां भाग अध्यात्म का भाग है और बायां भाग लौकिक शिक्षा का भाग है। गणित, तर्कशास्त्र आदि-आदि शिक्षाओं का केन्द्र है। मस्तिष्क का पिछला भाग 'अनुमस्तिष्क' अध्यात्म का भाग है और इससे जुड़ा है 'सुषुम्नाशीर्ष' । यह सारा अलौकिक भाग है।। शरीर में दो हिस्से हैं। एक है लौकिकता का हिस्सा और दूसरा है अलौकिकता का हिस्सा। अलौकिकता का हिस्सा सोया का सोया रहता है इसलिए विश्वास नहीं होता कि मनुष्य राग-द्वेष से मुक्त हो सकता है, वीतराग हो सकता है, सर्वज्ञ हो सकता है। आज की वैज्ञानिक खोजों ने मानवजाति पर बहुत बड़ा उपकार किया है और यह संभावना व्यक्त की है कि यदि आदमी मस्तिष्क को विकसित करे तो सर्वज्ञ बन सकता है, त्रिकालदर्शी बन सकता है। वह अतीत और भविष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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