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अमूर्त चिन्तन
रूप ज्ञात हो जाता है। उसकी कामना शांत हो जाती है। शरीर की सक्रियता का मूल स्रोत-प्राण
अशौच अनुप्रेक्षा का अर्थ है-शरीर की अशुचिता के विषय में चिंतन करना, अनुप्रेक्षण करना। बात गलत नहीं है, सही है। शरीर का जो वर्णन प्राप्त है उस शरीर से विरक्ति घटित करने के लिए जो बतलाया गया वह गलत नहीं होने पर भी पूरा सही नहीं है। एक कोण से सही है। हमारी भूल यह हुई कि शरीर के विषय में हमारी धारणा मिथ्या बन गई। शरीर को देखने का दूसरा कोण भी है। शक्ति, चेतना और आनन्द की सारी अभिव्यक्तियां इसी शरीर के माध्यम से होती हैं। इस शरीर में इतने केन्द्र हैं, इतने स्विच बोर्ड हैं, उनसे शक्ति का स्रोत फूटता है और चेतना की रश्मियां प्रस्फुटित होती हैं।
जिन लोगों ने शरीर का गहराई से अध्ययन किया है, वे बहत आगे बढ़े हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में, साधना के क्षेत्र में। चिकित्सा की पद्धतियां-एक्यूपंक्चर और एक्यूप्रेशर प्राणशक्ति के आधार पर, शरीर के आधार पर चल रही हैं। हमारे पूरे शरीर में प्राण की धारा प्रवाहित हो रही है। इसे हम ऊर्जा की धारा कहें, या बायोइलेक्ट्रीसिटी की धारा कहें, जैविक विद्युत् कहें, कोई अन्तर नहीं पड़ता। ये पूरे शरीर में प्रवाहित हैं। यदि शरीर के सूक्ष्म फोटो, को देखें तो पता चलेगा कि पूरा शरीर कुछ रश्मियों से बंधा हुआ है। ये ऐसी रश्मियां हैं जो पैर से लेकर सिर तक सीधी चली गई हैं। ये सारी प्राण की धाराएं हैं।
सामान्यत: हम समझते हैं कि हमारी सारी क्रिया, सारा प्रवृत्ति-चक्र रक्त के आधार पर चल रहा है। पर यह मूल कारण नहीं है। हड्डियां स्वस्थ हैं। मांसपेशियां ठीक काम कर रही हैं। रक्त का संचार सुचारु रूप से हे रहा है, पर यदि प्राण की धारा सूख गई है तो सब कुछ बन्द हो जाएगा। हड्डियां भी काम करना बन्द कर देंगी, मांसपेशियां सिकुड़ने लग जाएंगी और रक्त का संचार भी रुक जाएगा। इन क्रियाओं का मूल स्रोत है--प्राण। प्राण के द्वारा सब संचालित हो रहे हैं। प्राण की शक्ति जैसे-जैसे कम होती जाती है, शरीर की सारी शक्तियां भी कम होती जाती हैं। प्राण की शक्ति जितनी विकसित होती है, शरीर की सारी शक्तियां बनी रहती हैं। आधारभूत शक्ति है प्राण।
‘एक्यूप्रेशर' की पद्धति में यही किया जाता है। शरीर के अमुक-अमुक
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