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अमूर्त चिन्तन
सघन सूत्र उसके सिर पर थोपा जाता है । इन दोनों स्थितियों के बीच सारे तनाव बढ़ते चले जाते हैं ।
तनावों से बचने का ही उपाय है- अक्रियता की अवस्था का निर्माण । ध्यान' से अक्रियता की अवस्था का निर्माण होता है। समुदाय में रहते हुए अकेलेपन के अनुभव करने से भी इस अवस्था का निर्माण होता है। 'मैं अकेला हूं, शेष सब संयोग हैं।' संयोगों का अपना अस्तित्व मानना सक्रियता है। उन्हें अपने अस्तित्व से भिन्न देखना, अनुभव करना अक्रियता है ।
महावीर ने छह महीने तक एकत्व अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया था । अकेले व्यक्ति को यदि तीन महीने तक कोठरी में बन्द कर दें और वह यह सोचता रहे कि 'मैं अकेला हूं' तो तीन महीने के बाद जब वह बाहर आएगा तो वह इतना बदल जाएगा कि बाहर कि दुनिया उसे झूठी प्रतीत होने लगेगी । वह सोचेगा - सब कुछ झूठ ही झूठ है । जो लोग अपने सम्बन्धों की चर्चा करते हैं वे सब असत्य हैं। संसार में होने वाले सम्बन्ध सत्य नहीं हैं । सत्य है अकेलापन |
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