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अमूर्त चिन्तन
सत्य की खोज में जाता है, उसे वही बात मिलती है जो यहां मिलती है । सत्य की उपलब्धि में देश और काल की सारी सीमाएं समाप्त हो जाती हैं ।
एकांतवास का एक अर्थ है- एकांत में रहने का अभ्यास, एकांत का प्रयोग। दूसरा अर्थ है - एकत्व का अनुभव । एकांतवास का तीसरा अर्थ है- प्रतिस्रोत गमन की क्षमता । भीड़ में चलना, स्रोत के साथ-साथ चलना-यह गमन का एक प्रकार है । दूसरा भीड़ से विमुख होकर चलना, अनुसरण को छोड़ना । प्रतिस्रोत में चलना है। बहुत सहज होता है अनुस्रो में चलना । स्रोत बह रहा है, कोई भी तिनका आएगा, स्रोत में बह जाएगा । कोई भी चीज आती है, स्रोत में बह जाती है । स्रोत के प्रति चलना, बहुत कठिन साधना है । भीड़तंत्र आज का ही नहीं है । मनुष्य का समाज बना तब से चल रहा है । जब से मनुष्य ने अपने आपको समाज में ढाला तो अनुसरण की वृत्ति विकसित हुई ।
अब समाज को हम इस दृष्टि से देखते हैं कि सब लोग ऐसा करते हैं और यदि मैं ऐसा न करूं तो क्या फर्क पड़ेगा अथवा सब ऐसा नहीं करते हैं और मैं ऐसा करूं तो क्या फर्क पड़ेगा। दोनों बातें हमें सत्य से दूर ले जाती हैं । एकत्व का अनुभव करने वाला व्यक्ति, यह तर्क नहीं रखता कि समाज क्या करता है, समाज क्या नहीं करता है ? उसका चिंतन यह होगा कि मुझे क्या करना चाहिए। मेरा धर्म क्या है, मेरा कर्त्तव्य क्या है, मेरा दायित्व क्या है ? इस चिंतन का विकास एकत्व की भूमिका के आधार पर ही संभव हो सकता है। हमारे जीवन में अनुकूलताएं एवं प्रतिकूलताएं आती हैं। सर्दी और गर्मी आती हैं। सर्दी को सहना और गर्मी को सहना, अनुकूलता को सहना और प्रतिकूलता को सहना कठिन काम है । प्रतिकूलता की अपेक्षा अनुकूलता को सहना कठिन काम है । जब अनुकूलता की स्थिति होती है तो आदमी इतना अहंकार से भर जाता है कि अन्याय करते कोई संकोच नहीं होता । जब हाथ में सत्ता होती है, अधिकार होता है फिर अन्याय करने में कोई संकोच नहीं होता। इसलिए नहीं होता कि अनुकूलता को व्यक्ति सहन नहीं कर पाता । द्वेष बुराई तो है पर इतनी भयंकर बुराई नहीं, जितनी राग की बुराई है । अप्रियता बुराई तो है पर उतनी बुराई नहीं, जितनी प्रियता का संवेदन बुराई है।
एक संस्कृत कवि ने लिखा- जो भंवरा काठ को भेदकर चला जाता है, वही भंवरा कमलकोष में बन्द हो जाता है । उसे भेदकर बाहर नहीं निकल पाता । कहां काठ और कहां कमलकोष ! किन्तु कठोर काठ को भेद देना उसके वश की बात है । किन्तु राग का बन्धन इतना तीव्र होता है कि वह
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