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अमूर्त चिन्तन
भीड़ में भी अकेला
साधक अकेला रहे या समूह में ? यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। इस प्रश्न का समाधान आगम के आलोक में यह मिलता है-'एत्थ दो नया निच्छयनओ ववहारओ य। किसी भी विवादास्पद प्रश्न को एक ही कोण से देखने पर समाधान नहीं मिलता। समाधान की अनेक दिशाएं हैं। कम-से-कम दो दिशाएं हैं-निश्चय और व्यवहार । निश्चय नय एक सच्चाई है। इसके अनुसार व्यक्ति अकेला आता है, अकेला जाता है, अकेला सुख-दु:ख का भोग करता है और अकेला ही साधना करता है। इस भावना का प्रतिनिधित्व करने वाला एक राजस्थानी दोहा है
आप अकेला अवतरै, मरै अकेला होय । यूं कबहूं इण जीव रा, साथी सगो न कोय ।।
यह वास्तविकता है। इस सचाई को भूलने से बहुत बड़ी दुविधा उत्पन्न हो जाती है। कोई व्यक्ति यह सोचे कि मेरे बिना उसका काम नहीं चलता या उसके बिना मेरा काम नहीं चलता, यह उसका मानसिक भ्रम है। सचाई यह है कि किसी का काम किसी के बिना रुका नहीं रहता। जन्म और मृत्यु का प्रवाह बहता है। हर व्यक्ति इस प्रवाह में बहकर अदृश्य हो जाता है और संसार का काम ज्यों-का-त्यों चलता रहता है। फिर यह रात-दिन की चिंता और बैचेनी क्यों ? एकत्व अनुप्रेक्षा को विस्मृत कर देने से यह परेशानी खड़ी होती है। वास्तव में व्यक्ति स्वयं का स्वामी है। इसलिए वह अकेला रहना सीखे और अकेला जीना सीखे। शक्तिशाली व्यक्ति सदा ही अकेला रहता है। जंगल का शेर कब सोचात है
एकोऽहमसहायोऽहं, कृशोऽहमपरिच्छदः । स्वप्नेऽयेवंविधा चिंता, किं मृगेन्द्रस्य जायते ?
मैं अकेला हूं, असहाय हूं, कृश हूं, मेरा कोई परिवार नहीं है। लगा दस प्रकार की चिंता सिंह को कभी स्वप्न में भी होती है ?
शेर भी एक प्राणी है और मनुष्य भी एक प्राणी है। मनुष्य क्या शेर से कम शक्तिशाली है ? वह अनन्त शक्ति सम्पन्न है इसलिए उसे अकेलेपन का भय कभी होना ही नहीं चाहिए।
सन्त इकहार्ट जंगल में किसी वृक्ष के नीचे शांतभाव से बैठा था। उसका कोई पुराना मित्र उधर से गुजरा। उसने देखा इकहार्ट अकेला बैठा है। वह उसके पास जाकर बैठ गया और बोला-'शायद आप अकेले बैठे-बैठे ऊब रहे हैं, यह सोचकर मैं आपके पास आया हूं।' सन्त बोला-'भाई ! मैं अकेला कहां था? मैं तो अपने साथ था। मेरा प्रभु मेरे साथ था। तुमने आकर मुझे अकेला कर
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