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________________ अशरण भावना शरण खोजो । साधक बाहर से अत्राण को देखे और भीतर जो है, उसे देखे । वह सदा है, उसी को पकड़ने से त्राण पाया जा सकता है। उसकी स्मृति एक क्षण भी विस्मृत न हो। यह सुरति स्मृति योग है । गुरु नानक ने कहा है, जो उसे नहीं भूलता, वही वस्तुतः महान् है । वही सच्ची सम्पत्ति है जो हमारे साथ जा सकती है । स्वस्थ समाज की संरचना २७ महावीर ने अशरण का सूत्र दिया। उन्होंने किसी को शरण नहीं बतलाया। उन्होंने कहा - 'असरणं सरणं मन्नमाणे बाले लुप्पई' - अशरण को शरण मानने वाला अज्ञानी मनुष्य नष्ट हो जाता है । शरण कोई है ही नहीं । दूसरा है, वह शरण कैसे होगा ? आत्मा का शुद्ध स्वरूप है- अर्हत् । आत्मा का सिद्ध स्वरूप है-सिद्ध । आत्मा का साधक रूप है- साधु । आत्मा का चैतन्यमय रूप है- धर्म । कोई दूसरा शरण नहीं है, अपनी आत्मा ही शरण है। 'नाणं सरणं मे, दसणं सरणं मे, चरितं सरणं मे' ज्ञान शरण है, दर्शन शरण है, चारित्र शरण है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र ( वीतरागता ) की त्रिपुटी है- अर्हत् । ज्ञान, दर्शन और चारित्र की त्रिपुटी है - सिद्ध ज्ञान, दर्शन और चारित्र की त्रिपुटी की साधना है - साधु । दर्शन और चारित्र की त्रिपुटी का आचरण है- धर्म । ज्ञान, ये सब आत्मा से भिन्न नहीं हैं। हम इस भ्रान्ति को तोड़ दें कि हम किसी दूसरे की शरण में जा रहे हैं। हम अपनी ही शरण में जा रहे हैं, अपने अस्तित्व की शरण में जा रहे हैं । जो व्यक्ति इस अनुप्रेक्षा का, इस स्वस्थ चिंतन का अनुसरण करता है वह असामाजिक नहीं होता, अव्यावहारिक नहीं होता । व्यवहार में जितना परिष्कार आता है, समाज में जितना सुधार आता है, क्रांति और भलाई आती है, वह ऐसे व्यक्तियों के द्वारा ही आ सकती है । मूर्च्छा में रहने वाले समाज का सुधार नहीं कर सकते, समाज की भलाई नहीं कर सकते और वे सामाजिक क्रांति भी नहीं कर सकते। समाज को उन्नति के शिखर पर नहीं ले जा सकते। वे कैसे ले जाएंगे ? जिस व्यक्ति में पदार्थ के प्रति सघन मूर्च्छा है, जो पदार्थ को नित्य मानता है, वह पदार्थ के लिए इतने संघर्ष करता है कि वह समूचे समाज को लड़ाई में ढकेल देता है। जिस व्यक्ति में केवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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