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अमूर्त चिन्तन
यह क्रम दस मिनट तक चलता रहे। इससे कम समय में सफलता असम्भव है। प्रतिदिन इस क्रम से दोहराते रहें । यह ध्यान में रखें कि क्रम कहीं टूटे नहीं । अपने ध्येय के अनुसार ही आचरण करें। निश्चित ही हम लक्ष्य तक पहुंच जाएंगे। काल की अवधि में कुछ अन्तर हो सकता है, पर सफलता निश्चित है । कोई भी आदमी भावना के बिना सच्चा धार्मिक नहीं बन सकता और ध्यान की उच्च स्थिति में भी नहीं जा सकता । शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक तथा सभी प्रकार के विकास के लिए भावना का सर्वोपरि महत्त्व है ।
भावना का वैज्ञानिक स्वरूप
भावना का अभ्यास बहुत सूक्ष्म बात है। जब तक भावना का अभ्यास नहीं होगा, जब तक मन परम से भावित नहीं होगा, तब तक शक्तियों का विकास नहीं होगा । भाविअप्पा - भावितात्मा शब्द जैन आगमों का महत्त्वपूर्ण शब्द है। उसके पीछे रहस्यमयी भावना छिपी हुई है। जो भावितात्मा होता है वह अपनी भावना के अनुसार काम करने में सक्षम होता है । भावना का अर्थ केवल कुछ सोच लेना मात्र नहीं है। उसका अर्थ है - हमारे ज्ञान- तन्तुओं को तथा कोशिकाओं को अपने वशवर्ती कर लेना, उन पर अपनी भावना को अंकित कर देना ।
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हमारे शरीर में अरबों-खरबों न्यूरॉन्स हैं, जीव- कोशिकाएं हैं I ये न्यूरॉन हमारी अनेक प्रवृत्तियों का नियमन करते हैं। ये नियामक हैं । जो संकल्प न्यूरॉन तक पहुंच जाता है वह सफल हो जाता है। न्यूरॉन बड़े-बड़े काम संपादित करते हैं। इनकी कार्य प्राणाली को समझना बहुत ही कठिन है । अरबों-खरबों की संख्या में ये ज्ञान - तन्तु हमारे मस्तिष्क में बिखरे पड़े हैं। इनका मन की शक्ति के जागरण में बहुत बड़ा उपयोग है ।
प्राकृतिक चिकित्सा वाले कहते हैं कि कोष्ठबद्धता हो तो पहले स्थिर बैठकर ध्यानस्थ हो जाओं और ज्ञान- न-तन्तुओं को सूचना दो कि शौच साफ हो रहा है, पेट साफ हो रहा है। ज्ञान - तन्तु वैसा ही आचरण करने लग जाएंगे । मानसिक विकास के क्षेत्र में स्वतः सूचना या सूचनाओं का बहुत बड़ा महत्त्व है । सम्मोहन की प्रक्रिया भी आश्चर्यकारी है । इसकी पृष्ठभूमि में ज्ञान - तन्तुओं का ही चमत्कार है । इन ज्ञान-तन्तुओं में विचित्र क्षमताएं हैं, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते । सम्मोहन का प्रयोग सूचना के आधार पर चलता है। सूचना के आधार पर शारीरिक अवयव भी उसी प्रकार काम करने
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