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अमूर्त चिन्तन
हैं, वैसे ही आम खाने से फफोले उठ जाएंगे। क्या यह कोई कम चमत्कार है। हिप्नोटिज्म का प्रयोग करने वाले इस प्रकार की अनेक आश्चर्यकारी बातें प्रस्तुत करते हैं।
रोग से जितने आदमी दु:खी नहीं होते, उतने आदमी दुःखी होते हैं रोग के मानसिक चिन्तन से। यह सूत्र स्वास्थ्य पर भी लागू होता है। दवाइयों से जितने आदमी स्वस्थ नहीं होते उतने स्वस्थ होते हैं स्वास्थ्य के चिंतन से।
एक बीमार डॉक्टर के पास आया। उसकी बीमारी भयंकर थी। डॉक्टर ने उसे इन्जेक्शन देकर कहा-यह इन्जेक्शन बहुत शक्ति देने वाला है। इससे तुम शीघ्र ही शक्ति प्राप्त कर लोगे। ऐसा इन्जेक्शन भाग्य से ही मिलता है। तुम भाग्यशाली हो। . इन्जेक्शन की प्रशंसा ने काम करना प्रारंभ कर दिया। बीमार स्वस्थ हो गया। बीमार के मित्र ने डॉक्टर से पूछा कि वह इन्जेक्शन क्या था जो इतनी शीघ्रता से असर कर गया ? डॉक्टर ने कहा-बीमार पर ज्यादा प्रभाव डालती है-भावना। मैंने केवल पानी का इन्जेक्शन दिया था। किन्तु बीमार के मन पर उस इन्जेक्शन ने इतना प्रभाव जमा डाला कि वह पानी का इन्जेक्शन भी उसके लिए संजीवनी बूटी बन गया।
डॉक्टर ने दूसरा परीक्षण और किया। एक रोगी को बहुत कीमती दवा देते हुए कहा-यह साधारण-सी दवा है, ले लो। जब इससे बढ़िया दवा आयेगी तब और दे दूंगा। रोगी दवा लेता गया, कोई असर नहीं हुआ। यह भी भावना का ही प्रतिफलन है।
___ कोरा राख से लाभ हो जाता है और हीरे की भस्म से भी कोई लाभ नहीं होता।
एक वैद्य ने जुकाम के लिए दवाई दी। रोगी ने पूछा-क्या नाम है औषधि का ? वैद्य ने कहा-यह है महाप्रतापलंकेश्वरी रस। नाम सुनते ही रोगी ने सोचा-कितनी मूल्यवान् होगी यह औषधि ? इतना बड़ा और अच्छा नाम है तो गुण भी ऐसे ही होंगे। 'रस' भी है, 'प्रताप' भी है और लंकेश्वरी' भी है। तीनों एक साथ हैं। औषधि का सेवन किया। रोगी स्वस्थ हो गया। मैंने पूछा-वैद्यजी ! इतना बिगड़ा हुआ जुकाम था वह आपकी इस औषधि से ठीक हो गया। आखिर औषधि क्या है ? 'रस' है तो पारद इसमें अवश्य ही होगा तथा 'प्रताप' और 'लंकेश्वरी' है तो कोई तेज धातु का योग होना चाहिए।
___ वैद्य ने मुस्कराते हुए कहा-मुनिजी ! औषधि का फार्मूला मैं बताना नहीं चाहता, पर आपको देता हूं। उसमे दो चीजें हैं-राख और काली-मिर्च । राख लकड़ी की नहीं, अरण्य के उपलों की। बस, यही इस औषधि का फार्मूला है।
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