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________________ अनुप्रेक्षा और भावना सकता है। हमारे यहां भावना का प्रयोग चलता था कि हम वैसा अनुभव करें। भावना का प्रयोग करें कि यह हाथ ऊपर उठ रहा है। उठाने का प्रयत्न नहीं करेंगे। अपने आप उठेगा और सिर पर लग जाएगा। आप भावना करें कि हाथ भारी हो गया है, हाथ बहुत भारी बन जाएगा। कल्पना करें कि हाथ हलका हो गया है, हलका हो जाएगा। भावना करें कि हाथ ठंडा हो रहा है, ठंडा हो जाएगा। भावना करें कि हाथ गर्म हो रहा है, हाथ गर्म हो जाएगा। भावना हमारी चेतना को और वातावरण को बदलती है। यह ठीक भावना का प्रयोग है-ओटोजेनिक चिकित्सा। इस पद्धति के द्वारा रोगी अपने आप अपने को स्वस्थ करता है। दूसरे मार्ग-दर्शक की बहुत जरूरत नहीं होती। मात्र वह तो कहीं-कहीं सुझाव देता है। रोगी स्वयं अपनी चिकित्सा कर लेता है। सुझाव का प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक आदमी पीड़ित है किसी भी अवयव की पीड़ा से। घुटने का दर्द, कमर का दर्द, गर्दन का दर्द-ये तीन स्थान बहुत ज्यादा दर्द के हैं। भारतीय लोग इनसे पीड़ित हैं। ये खास स्थान हैं। दर्द है, शरीर प्रेक्षा का प्रयोग कर रहे हैं, उसे देख रहे हैं। इसके साथ भावना का प्रयोग करें। जहां दर्द है वहां हाथ टिका दें। उसे देखना शुरू कर दें। ध्यान उस पर केन्द्रित कर दें। अंगुली का निर्देश और ध्यान वहां पर केन्द्रित है। दीर्घश्वास लें, ध्यान वहीं टिका रहे, बीच-बीच में सुझाव दें कि अवयव स्वस्थ हो रहा है। आप प्रयोग करके देखें कि परिणाम क्या आता है ! कितना अद्भुत परिणाम आता है ! भावना के द्वारा, सुझाव के द्वारा हमारी चेतना बदलना शुरू कर देती है। चेतना में परिवर्तन होना शुरू हो जाता है। हम आदतों को बदल सकते हैं। जटिल से जटिल आदत को भावना के प्रयोग के द्वारा बदला जा सकता है। जिस आदत को बदलने में हजारों उपदेश और हजारों शिक्षाएं काम नहीं करतीं, भावना के द्वारा व्यक्ति स्वयं को बदल सकता है और अपनी चेतना को एकदम नए ढांचे में ढाल सकता है। ब्रेनवाशिंग का मुख्य साधन-भावना भावना मस्तिष्क की धुलाई करने का बहुत बड़ा साधन है। एक ही बात को बार-बार दोहराते जाएं, उसकी पुनरावृत्ति करते जाएं, ऐसा करते-करते एक क्षण ऐसा आता है कि पुराने विचार छूट जाते हैं और नए विचार चित्त में जम जाते हैं। जब तक हमारी यह धारणा जमी हुई है की सुख-दुःख देने वाला तीसरा व्यक्ति है, तब तक आदमी का रूपान्तरण नहीं होता। भावना योग के द्वारा जब इस विचार की धुलाई हो जाती है, इस विचार को उखाड़ दिया जाता है, तब सुख-दुःख की कोई भी घटना घटित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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