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________________ अमूर्त चिन्तन जब तक हमारी भावना उन तक नहीं पहुंचती तब तक हम नहीं बदल सकते । उदाहरण लें- एक आदमी अपनी क्रोध की आदत को बदलना चाहता है । संकल्प करता है - मैं क्रोध नहीं करूंगा। बार-बार करता है, पर सफल नहीं होता । कितने ही लोग बुरे काम करते हैं और पछताते हैं । फिर सोचते हैं, फिर ऐसा नहीं करूंगा। पर ठीक समय आता है, काम हो जाता है। गुस्सा भी आता है, वासना भी सताती है, वृत्तियां भी सताती हैं । सब अपने समय पर सताने लगते हैं। शराबी शराब को छोड़ने का संकल्प करता है, तम्बाकू का व्यसनी तम्बाकू को छोड़ने का संकल्प करता है । सोचता है, सेवन नहीं करूंगा, पर समय आता है तो भीतर में ऐसी प्रबल मांग जागती है कि उसका संकल्प धरा का धरा रह जाता है। संकल्प भंग हो जाता है । ऐसा क्यों होता है ? इसलिए होता है कि हम अपने संकल्प को वहां तक पहुंचा नहीं पाते । बाहर ही बाहर में देखते हैं । हम बहुत अभ्यासी हैं बाहरी बात में । बाहरी को देखते हैं और सारी कल्पना बाहर ही करते हैं । 1 स् परिवर्तन की प्रक्रिया का दूसरा सूत्र है - भावना का प्रयोग, संकल्पक्ति का प्रयोग, अप्रभावित रहने का प्रयोग । यह संतुलन का प्रयोग होता है तो जीवन में समता घटित होती है और आदमी सौ कदम आगे बढ़ जाता हैं T साधक ध्यान के पूर्व और ध्यान के बाद भावनाओं के अभ्यास का सतत् स्मरण करता रहे। उनसे एक शक्ति मिलती है, धीरे-धीरे मन तदनुरूप परिणत होता है, मिथ्या धारणाओं से मुक्त होकर सत्य की दिशा में अनुगमन होता है और एक दिन स्वयं को तथानुरूप प्रत्यक्ष अनुभव हो जाता है। भावना और ध्यान के सहयोग से मंजिल सुसाध्य हो जाती है। साधक इन दोनों की अपेक्षा को गौण न समझे। सभी धर्मों ने भावना का अवलम्बन लिया है । भावनाएं विविध हो सकती हैं। जिनसे चित्त की विशुद्धि होती है वे सारी भावनाएं हैं। आज की भाषा में भावना का अर्थ है-ब्रेनवाशिंग । इसका अर्थ है - मस्तिष्क की धुलाई । राजनीति के क्षेत्र में ब्रेनवाशिंग की प्रक्रिया बहुत प्रचलित है। इसका प्रयोजन है, पुराने विचारों की धुलाई कर उनके स्थान पर नए विचारों को भर देना । यह बहुत प्रचलित प्रक्रिया है । इसका प्रयोग प्रत्येक राष्ट्र करता है । ओटोजेनिक चिकित्सा पद्धति पश्चिम के लोगों ने एक चिकित्सा की प्रणाली का विकास किया है- आटोजेनिक चिकित्सा पद्धति । इस पद्धति में स्वतः प्रभाव डालने वाली बात होती है । वे कल्पना करते हैं और कल्पना के सहारे वैसा अनुभव करते हैं । इस ओटोजेनिक प्रणाली को योग की भाषा में भावात्मक प्रयोग कहा जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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