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________________ अनुप्रेक्षा और भावना वासना का ही दूसरा नाम भावना है। शास्त्रीयज्ञान या शब्दज्ञान का जो सहारा लिया जाता है, वह वासना है। इसे भावना, जप धारणा, संस्कार, अनुप्रेक्षा और अर्थचिंता भी कहा जाता है और ये सब स्वाध्याय के ही प्रकार हैं । जैन साधना पद्धति में 'भावनायोग' शब्द का व्यवहार हुआ है । भावना से मन आत्मा या सत्य से युक्त होता है, इसलिए यह योग है । भावना में ज्ञान और अभ्यास - दोनों के लिए अवकाश है । भावना का अर्थ है - सविषय ध्यान । यही इसकी परिभाषा है। जब आपके मन में कोई विषय है, आपने कोई ध्येय चुना है, आप सविषय ध्यान कर रहे हैं, यह है भावना | भावना, सविषय ध्यान और जप में कोई अन्तर नहीं है । तीनों एक हैं। अपनी उपयोगिता के आधार पर भिन्न-भिन्न नामों का चुनाव हुआ है। तात्पर्य में कोई अन्तर नहीं है । जप का अर्थ यह है कि जो जप्य है, जिसका जप करना है, उस जप्य वस्तु के प्रति व्यक्ति का तन्मय और एकाग्र हो जाना । भावना का अर्थ है - भाव्य व्यक्ति या वस्तु के प्रति तन्मय और एकाग्र हो जाना । धारणा का अर्थ भी यही है। जिसकी धारणा करनी है उसके प्रति तन्मय और एकाग्र हो जाना । सविषय ध्यान भी यही है । विषय के प्रति या ध्येय के प्रति तन्मय और एकाग्र हो जाना । जप, भावना, धारणा और सविषय ध्यान- चारों एक कोटि के हैं । इनमें तात्पर्य- भेद नहीं है, नाम-भेद है केवल । भावना नौका है। भगवान् महावीर ने कहा- - जिसकी आत्मा भावना-योग से विशुद्ध होती है, वह जल में नौका की तरह है । वह जब चाहे पार पहुंच सकती है। अब इस नौका का उपयोग कैसे हो ? वह प्रश्न शेष रहता है । भावना से भावित होना आवश्यक होता है । हम जो भी होना चाहते हैं, हो जाते हैं । जो घटित करना चाहते हैं, वह घटित हो जाता है। जिस रूप में मन को बदलना चाहते हैं, बदल लेते हैं । तन्मयता और एकाग्रता के साथ हमने जो भावना की वैसा ही होना होता है । उसमें कोई अन्तर नहीं आता। प्रश्न है एकाग्रता का, स्थिरता का । शरीर- प्रेक्षा के द्वारा शरीर के भीतर देखना, फिर संकल्प शक्ति और भावना के प्रयोग द्वारा बदलने की भावना को अवचेतन मन तक पहुंचा देना, यह है रूपान्तरण की प्रक्रिया । प्रत्येक कोशिका में ज्ञान केन्द्र है । प्रत्येक कोशिका में प्रकाश- केन्द्र है, बिजली का कारखाना है। हर कोशिका का अपना एक कारखाना है । विद्युत् का, शक्ति का । वे कोशिकाएं अपने ढंग से काम करती हैं। उनको बदलना है, उनको नया जन्म देना है, उनको नया रास्ता देना है तो आपको अपनी भावना को उन तक पहुंचाना होगा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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