________________
१४२
सफलता का सूत्र : संभावनाओं का आधार
पर्याय अनन्त हैं । हमारे भीतर अनन्त संभावनाएं छिपी हुई हैं । कोयला हीरा बन सकता है। आज तो यह निश्चित मान्यता हो गई कि कोयला ही हीरा बनता है। कोयले में हीरा बनने की संभावना छिपी हुई है । हर पदार्थ में सब कुछ बनने की संभावना होती है। यह अनेकांत की स्वीकृति है । असंभावना तो बहुत ही थोड़ी है। चेतन अचेतन नहीं बन सकता और अचेतन चेतन नहीं बन सकता। इसके अतिरिक्त सब कुछ बनाया जा सकता है । कोई भी ऐसा नियम नहीं है कि जो एक दूसरे में न बदल सके या न बन सके। सब कुछ बना जा सकता है। सारी संभावनाएं हैं। मिट्टी के एक कण में सारे वर्ण, सारे गंध और सारे स्पर्श होते हैं। मिट्टी का एक कण चीनी से अनन्त गुना मीठा होता है ।
अमूर्त चिन्तन
आदमी इसीलिए निराश होता है कि वह अनेकांत के नियम को नहीं जानता। इस बात को भूल जाता है कि कोई भी पर्याय शाश्वत नहीं होता । हर पर्याय बदलता रहता है । आज रोग का पर्याय प्रगट हुआ है, हमारा प्रयत्न चले तो नीरोगता का पर्याय प्रगट हो सकता है । आज दुःख का पर्याय अभिव्यक्त हुआ है तो कल सुख का पर्याय अभिव्यक्त हो सकता है । जिस व्यक्ति में इस संभावना को मानने की क्षमता होती है वह कभी दुःखी नहीं होता, वह कभी रोगी नहीं होता। वह कभी खाट पर पड़े-पड़े जीवन नहीं बिता सकता । वह अपनी सोयी शक्ति को जगा लेता है ।
अनेकांत है जीवन दर्शन
कुछ भी अलग नहीं है । सब कुछ जुड़ा हुआ है । सर्वथा भेद या सर्वथा अभेद, सर्वथा विरोध या सर्वथा अविरोध, सर्वथा अपना या सर्वथा पराया- यह केवल विपर्यय है, यथार्थ नहीं। यदि हमें यथार्थ के साथ रहना है तो हमें जीवन और व्यवहार में अनेकांतदृष्टि को विकसित करना होगा। सबसे बड़ी भूल यह हुई कि हमने अनेकांत को तत्त्ववाद मान लिया । यही मान लिया है कि तत्त्व की व्याख्या में ही अनेकांत का उपयोग होता है । यह भूलभरी मान्यता है । जो व्याख्या जीवन के साथ नहीं जुड़ती, वह तत्त्व के साथ भी नहीं जुड़ सकती । जीवन भी तो एक तत्त्व है । वह महान् तत्त्व है । सारी व्याख्याएं उसी से निकलती हैं। सारे सिद्धांत, धारणाएं और वाद उसी में से निकलते हैं। जीवन से अलग-अलग किसी तथ्य या तत्त्व की व्याख्या नहीं हो सकती । जिस तत्त्व का जीवन के साथ कोई स्पर्श ही नहीं होता, उसका किसी के साथ स्पर्श नहीं हो सकता । 'यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे' जिसने यह सूत्र
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org