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अमूर्त चिन्तन
वह आज नहीं है । किन्तु यह इसलिए घटित होता है कि मन के साथ एक रागात्मक भाव जुड़ा था, उसकी अब पूर्ति नहीं हो पाती। ऐसी स्थिति में मन को इतनी गहरी ठेस लगती है कि व्यक्ति तिलमिला उठता है, वह अपने आपको संभाल नहीं पाता ।
एक व्यक्ति के पास करोड़ों की संपत्ति है। क्या उसके लिए इतनी संपत्ति उपयोगी है ? नहीं। वह उस संपत्ति को भूमि में गाड़कर रखेगा। क्या उसका कोई उपयोग है ? फिर भी मन में एक रागात्मक भाव जुड़ा हुआ है कि यह मेरा है । यह मेरी संपत्ति है । यह भाव उसे संतोष दे रहा है। उससे मानसिक संतोष मिलता है, मानसिक तृप्ति मिलती है। जिस दिन संपत्ति चली जाती है या उस पर रहा हुआ स्वामित्व छूट जाता है, तब आदमी अस्त-व्यस्त, आकुल व्याकुल हो जाता है । स्वामित्व छूटने से क्या अन्तर पड़ा ? कोई भी अन्तर नहीं पड़ा। वह संपत्ति तो वहीं की वहीं पड़ी है। वैसी की वैसी है। केवल स्वामी बदला है । किन्तु मन का वह धागा टूट गया है। अब वह एकांत में या जंगल में जाकर रहने की सोचता है । देश को छोड़ देने की बात सोचता है या शरीर को छोड़ देने की बात सोचता है । यह सब इसलिए होता है कि व्यक्ति में तटस्थता नहीं है। जब व्यक्ति तटस्थ नहीं होता तब वह प्रत्येक परिस्थिति के साथ अपने आपको जोड़ देता है। वह मन को परिस्थिति से अलग नहीं रख पाता । जब समत्व की अवस्था जागती है तब तटस्थता भी जाग जाती है । जो व्यक्ति तटस्थ होता है, वह लाभ-अलाभ, जो भी घटित होता है उसे जान लेता है, उसे देख लेता है, पर उसमें लिप्त नहीं होता । अपने को उसके साथ नहीं जोड़ता । जान लेता है, भोगता नहीं । जानने वाला न दुःखी होता है और न सुखी होता है, भोगने वाला दुःखी भी होता है और सुखी भी होता है। दोनों भार उसे उठाने पड़ते हैं । समत्व की दूसरी अवस्था है- तटस्थता ।
तटस्थता का फलित-मानसिक स्वास्थ्य
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मानसिक स्वास्थ्य की एक कसौटी है । जो व्यक्ति मन से स्वस्थ होता है वह अच्छा व्यवहार करने वाले के प्रति अच्छा व्यवहार करता है और उस व्यक्ति के प्रति भी अच्छा व्यवहार करता है जो प्रतिकूल व्यवहार करता है अच्छे के प्रति अच्छा और बुरे के प्रति भी अच्छा । वह ऐसा इसलिए करता है कि यदि सामने वाला व्यक्ति मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ है तो क्या वह भी अस्वस्थ हो जाए। वमन करने वाले को देखकर क्या स्वयं भी वमन करने लग जाए। मन की स्वस्थता रखने वाला व्यक्ति ऐसा नहीं कर सकता ।
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