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उपेक्षा भावना
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प्रतिकूल व्यवहार वही व्यक्ति करता है जो मन से दुर्बल है, मन से अस्वस्थ है। जिन व्यक्तियों ने इस सूत्र का विकास किया है कि 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' ईंट का जबाब पत्थर से-वे व्यक्ति वास्तव में ही मन से रोगी थे। यदि वे स्वस्थ होते तो इस प्रकार के सूत्रों का प्रतिपादन नहीं होता। आवश्यकता यह है कि सामने वाला व्यक्ति यदि मन से दुर्बल है, अस्वस्थ है तो तुम अपने मानसिक स्वास्थ्य का परिचय दो और उसे यह समझने का अवसर दो कि तुम अपने मन से रुग्ण नहीं हो, मन से स्वस्थ हो।
किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति अनुरक्त होने और उससे भिन्न वस्तु या व्यक्ति के प्रति द्विष्ट होने का अर्थ पक्षपात है। पक्षपात यानी विषमता। राग और द्वेष से होने वाले अन्याय के परिणामों को समझे बिना क्या कोई भी व्यक्ति मानसिक झुकाव से बच सकता है ?
कोई व्यक्ति उन्मार्ग की ओर जा रहा है। उसे सन्मार्ग पर लाने का प्रयत्न करना कर्तव्य है, किन्तु बल-प्रयोग के द्वारा उस कर्त्तव्य की पालना नहीं हो सकती। हृदय परिवर्तन का प्रयत्न करने पर भी यदि सामने वाला व्यक्ति उन्मार्ग से विमुख नहीं होता है तो उसके लिए प्रतीक्षा ही की जा सकती है किन्तु क्रोध करके अपने मन को धूमिल और परिस्थिति को जटिल बनाना समुचित नहीं हो सकता। उलझन-भरी परिस्थिति व वातावरण में अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखने का अभ्यास करने, न्याय के प्रति दृढ़ निष्ठा होने तथा हृदय परिवर्तन के सिद्धांत में आस्था होने से मध्यस्थता का संस्कार सुस्थिर होता है। भगवान् महावीर ने कहा-उवेहमाणो अणुवेहमाणं बुया उवेहाहि समियाए'-मध्यस्थभाव रखने वाला व्यक्ति मध्यस्थभाव न रखने वाले से कहता है-'तुम सत्य के लिए मध्यस्थ भाव का आलम्बन लो।'
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