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उपेक्षा भावना
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तटस्थता को देखो। अन्यदर्शी को देखो । उसको देखो जहां दूसरा कोई नहीं है । चेतना के उस शुद्ध स्वभाव को देखो जहां जानने-देखने के सिवाय कुछ भी नहीं है । वही परम दर्शन है। उसके आगे कुछ भी नहीं है । देखने में यह भेदरेखा मत खींचो कि इसे देखूंगा और उसे नहीं देखूंगा। अच्छे को देखूंगा । बुरे को नहीं देखूंगा । देखने के क्षेत्र में अच्छा या बुरा कुछ भी नहीं होता । ये विकल्प होते हैं- सोचने-विचारने के क्षेत्र में । जो भी आए देखते रहो । देखते-देखते वह बिन्दु आ जाएगा जहां आगे देखना शेष नहीं है । परम आ जाएगा। वहां हमारी यात्रा की संपन्नता होगी, अनन्य आ जाएगा । तब हम अपने शुद्ध चैतन्य के अनुभव में, ज्ञान और दर्शन की समग्रता में पहुंच जाएंगे। वहां केवल जानना देखना ही रहेगा और सब समाप्त। यह यात्रा का अन्तिम बिन्दु है।
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समत्व की दूसरी अवस्था है - तटस्थता
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समत्व का अर्थ है तटस्थता । तुम तटस्थ रहो । एक ओर मत झुको । इस संसार में कभी कुछ अप्रिय घटित होता है और कभी कुछ प्रिय घट होता है । कभी वह घटित होता है जो हम चाहते हैं और कभी वह घटित होता है जो हम नहीं चाहते । चाहा भी घटित होता है, अनचाहा भी घटित होता है । अब यदि इसके साथ हमारे मन का चक्का भी घूमता रहेगा तो इतनी उलझने बढ़ जाएंगी कि अन्ततः आत्म-हत्या के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचेगा । एक आदमी का जब मनचाहा होता है तब वह अत्यन्त प्रसन्न रहता है। जब वह देखता है कि विश्व के इस क्षितिज पर अनचाहा भी घटित हो रहा है तब उसका मन उलझनों से भर जाता है। इन उलझनों से पार जाने के लिए वह आत्म हत्या को कारगर मान बैठता है ।
एक सुन्दरी है । फिल्प अभिनेत्री या नर्तकी है। वह अभी यौवन की दहलीज पर है । राष्ट्र या विश्व में उसका सम्मान होता है । वह विश्व प्रसिद्ध हो जाती है। उसकी अवस्था बदलती है। वह यौवन को पार कर वृद्धावस्था की ओर बढ़ती है। अब उसे लगता है कि उसे कम सम्मान मिल रहा है । उसका आकर्षण कम हो गया है। जो प्रतिष्ठा और प्रसिद्धि प्राप्त थी, वह धीरे-धीरे कम हो रही है। लोगों में जो प्रियता थी, वह कम हो रही है, तब वह सुन्दरी सन्तुलन खो बैठती है और अपने जीवन को समाप्त करने पर तुल जाती है। इस प्रकार अनेक महिलाओं ने आत्म हत्या कर अपनी जीवन लीला समाप्त की है। ऐसा क्यों होता है ? यह इसलिए नहीं होता है कि पहले जो सम्मान प्राप्त था वह आज नहीं है, जो प्रियता या आकर्षण था
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