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________________ करुणा भावना ९९ मेरे जैसे ही मनुष्य हैं। हम सब एक ही हैं। मैं भी मनुष्य हूं। वह भी मनुष्य है। मुझे मनुष्य को मनुष्य की दृष्टि से देखना चाहिए।' इस दृष्टि का विकास बहुत जरूरी है आज सामाजिक जीवन में। जब तक इस दृष्टि का विकास नहीं होगा तब तक क्रूरता समाप्त नहीं होगी, व्यवहार नहीं बदलेगा। आदमी दूसरे आदमी के प्रति बहुत क्रूर व्यवहार कर लेता है। मिल मालिक मजदूर के प्रति, सेठ कर्मचारी के प्रति, अफसर अपने अधीनस्थ व्यक्तियों के प्रति क्रूर व्यवहार करता है। सर्वत्र क्रूर व्यवहार देखा जाता है। इसका कारण है-बड़प्पन और छुटपन का मनोभाव। यह मान लिया गया है कि एक बड़ा है, एक छोटा है। बड़ा छोटे के प्रति क्रूर व्यवहार कर सकता है, मानो कि यह मान्यता प्राप्त स्थिति है। यहां का आदमी पशुओं के प्रति भी क्रूर व्यवहार करता है। जिस गाय से दूध लेना है आदमी उसी को पीट देता है। ऐसा पीटता है कि गाय आगे-आगे दौड़ती है और आदमी उसी पर लाठियां बरसाता हुआ पीछे-पीछे दौड़ता चला जाता है। जिस गाय से दूध लेना है उस गाय को पीटने से दूध कहां रहेगा ? दूध सूख जाएगा। दूध भी प्रेमपूर्ण व्यवहार किए बिना नहीं मिलता। जिन लोगों ने यह समझ लिया है कि गाय के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार करने से अधिक दूध देगी, उन्होंने पशुओं के रहन-सहन की सुन्दरतम व्यवस्थाएं की हैं। उनके रहने के लिए मकान हैं। वहां पंखें चलते हैं। वहां कहीं-कहीं वातानुकूलित मकान हैं। रेडियो बजते हैं। संगीत की स्वर-लहरियां थिरकती हैं। इस वातावरण में रहने वाली गायें अधिक दूध देती हैं, गालियां दी जाती हैं, तिरस्कार किया जाता है उनका दूध धीरे-धीरे सूख जाता है। हर प्राणी प्रेमपूर्ण व्यवहार चाहता है। वैज्ञानिकों ने वनस्पति जगत् पर प्रयोग कर यह सिद्ध कर दिया कि जिन पौधों को प्रेमपूर्ण भावना से पानी सींचा जाता है, वे पौधे अधिक विकसित होते हैं। जिन पौधों को उपेक्षा वृत्ति से पानी सींचा जाता है, वे कुम्हला जाते हैं। पानी वही है, सींचने वाला भी वही है. कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं है, किन्तु भावात्मक परिवर्तन के द्वारा एक दिशा के पौधे बढ़ गए और दूसरी दिशा के पौधे मुरझा गए। जिनको आवेश में, क्रोध की स्थिति में पानी दिया गया, वे मुरझा गये और प्रेमपूर्ण भावना से सिंचन मिलने वाले पौधे बहुत बढ़ गए। हम प्राणी से काम भी लेना चाहते हैं और क्रूरता भी करते चले जाते हैं। यह प्रतिकूल आचरण है। दुनिया का नियम है कि प्रेमपूर्ण व्यवहार से दूसरे से अधिक काम लिया जा सकता है, जीवन में सफल हुआ जा सकता है, अधिक सहयोग लिया जा सकता है, परन्तु अभी तक मानवीय दृष्टिकोण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003139
Book TitleAmurtta Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size11 MB
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