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अमूर्त चिन्तन
और सज्जन व्यक्ति के लिए तीनों विपरीत रूप में होती हैं। उसके लिए विद्या विवाद के लिए नहीं, ज्ञान के लिए होती है। उसके लिए धन अहंकार का कारण न बनकर दान का कारण बनता है और शक्ति का उपयोग दूसरों को पीड़ित करने के लिए नहीं किन्तु दूसरों की रक्षा के लिए होता है। वह क्रूर नहीं होता। उसमें करुणा का अजस्र स्रोत बहता रहता है। क्रूरता की समस्या : करुणा का समाधान
क्रूरता का सबसे बड़ा कारण है-लोभ, धनार्जन की अति आकांक्षा या संग्रह की वृत्ति। प्रश्न है कि क्या क्रूरता को मिटाया जा सकता है ? क्या इसका विसर्जन किया जा सकता है ? क्या इसका कोई उपाय है ? हम समस्या को जानते हैं। हमें उसके निराकरण को भी जानना होगा। समस्या का अन्त तब तक नहीं होता जब तक हम निराकरण का सही उपाय नहीं जानेंगे। समस्या है तो उसके निराकरण का उपाय भी है। उपाय वही होता है जो मूल को छूता है। सहायक कारण अनेक हो सकते हैं, पर उनसे मूल समस्या का अन्त नहीं होता। समस्या का अन्त तभी होता है जब सही उपाय हस्तगत हो जाता है।
रास्ते में प्यास से व्याकुल होने पर शिवाजी के गुरु रामदास ने प्यास मिटाने के लिए खेत से एक गन्ने का टुकड़ा तोड़ा। तोड़ते ही किसान ने रामदास को डण्डे से पीटा। गुरु को डण्डे से पीटे जाने पर शिवाजी का क्रुद्ध होना स्वाभाविक था। लेकिन रामदास ने रहस्य को समझाते हुए कहा-'तुम्हें बात समझ में नहीं आयी। कोई गूढ़ रहस्य नहीं है। देखो, यह किसान गरीब है। यदि यह गरीबी से ग्रस्त नहीं होता तो ऐसा व्यवहार कभी नहीं करता। इसने गरीबी के कारण ही ऐसा व्यवहार किया है। यदि इसकी अपराध-वृत्ति को मिटाना है तो इसकी गरीबी को मिटाना होगा। इसे पांच बीघा जमीन और दे दो, फिर यह ऐसा व्यवहार कभी नहीं करेगा।' ।
यह है समस्या का समाधान और यह है समस्या का सम्यक् उपाय। हम मूल कारण की खोज नहीं करते और मूल कारण को खोजे बिना समस्या का भी समाधान नहीं हो सकता। क्रूरता ही समस्या का मूल है-अमानवीय दृष्टिकोण, फिर चाहे वह लोभ के रूप में अभिव्यक्त हो या संग्रहवृत्ति के रूप में विकसित हो। इसको मिटाने का एक मात्र उपाय है-मानवीय दृष्टिकोण का विकास। इसे ही प्राचीन भाषा में आत्मौपम्यदृष्टि कहा गया है। इसका अर्थ है प्रत्येक प्राणी को अपने समान समझना। आधुनिक भाषा में यही है मानवीय दृष्टि। इसका फलित है कि प्रत्येक व्यक्ति में चेतना जागे कि 'सब
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