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करुणा भावना
करुणा मैत्री का प्रयोग है। जिसका सब जगत् मित्र है, उसकी करुणा भी जागतिक हो जाती है। उस करुणा का सम्बन्ध पर-सापेक्ष नहीं होता। वह भीतर का एक बहाव है जो प्रतिपल सरिता की धारा की तरह प्रवाहित रहता है। महावीर, बुद्ध, जीसस आदि संत इसके अनन्यतम उदाहरण हैं। महायान बौद्ध कहते हैं-बुद्ध का निर्वाण हुआ। वे निर्वाण के द्वार पर रुक गये। कहा-भीतर आओ। बुद्ध कहते हैं-जब तक समस्त प्राणी दु:ख से मुक्त नहीं होते तब तक मैं भीतर कैसे आ सकता हूं ? प्रेम का हृदय-सागर जब छलछला जाता है तब करुणा की ऊर्मियां तट पर टकराने लगती हैं। जितने भी संत बोले हैं, वे सब प्रेम-मैत्री के मूर्त रूप थे और वह प्रेम करुणा के माध्यम से वाणी के द्वारा बाहर बहा है।
___ अमेरिकन विचारक हेनरी थारो से एक व्यक्ति मिलने के लिए आया। हाथ मिलाया और तत्क्षण हेनरी ने हाथ छोड़ दिया। कहा-यह हाथ जीवंत नहीं है, मृत है। इसमें प्रेम, करुणा, सौहार्द, सहानुभूति नहीं है। यह उदात्त प्रेम की सूचना है। करुणा, सौहार्द आदि गुण मनुष्य की आन्तरिक चेतना की शुद्धि का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हजरत उमर ने एक व्यक्ति को किसी प्रान्त का गवर्नर नियुक्त किया। नियुक्ति पत्र लिखा और आवश्यक सूचना दी। इतने में एक छोटा बच्चा आ गया, हजरत उसे प्रेम करने लगे। उसने कहा, 'मेरे दस बच्चे हैं, किन्तु मैंने इतना प्रेम और इस प्रकार आलाप-संलाप कभी नहीं किया।' हजरत ने वह नियुक्ति-पत्र वापस लेकर फाड़ते हुए कहा-'जब तुम अपने बच्चों से भी प्रेम नहीं कर सकते, तब प्रजा से प्रेम की आशा मैं कैसे करूं ?'
एक संत के पास एक व्यक्ति संन्यासी बनने आया। संत ने पूछा- क्या तुम किसी से प्रेम करते हो ?' उसने कहा-'आप क्या बात कर रहे हैं ? मेरा किसी से प्रेम नहीं है।' संत ने कहा-'तब मुश्किल है। अगर प्रेम हो तो उसे व्यापक बनाया जा सकता है, किन्तु है ही नहीं, तब मैं क्या करूं ?' प्रेम, करुणा, सहानुभूति ये अन्तस्तल के सूचना-संस्थान हैं। दु:खी, पीड़ित, त्रस्त व्यक्ति को देखकर जो करुणा का भाव जागृत होता है वह यह सूचना देता है कि आपका चित्त कोमल, मृदु और प्रेम से शून्य नहीं है। उसी करुणा को आत्मा से जोड़ना है, दु:ख के कारणों को मिटाना है, जिससे अनन्त करुणा का जन्म हो सके।
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