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प्रमोद भावना
साधना-लभ्य उपलब्धि है । हर व्यक्ति ऐसा कर नहीं सकता ।
सन् १९७९ में मुझे युवाचार्य पद पर मनोनीत किया गया । अनेक ऊहापोह हुए। मेरे सहपाठी और साथी मुनि बुद्धमलजी ने जिस भाव - भाषा में प्रमोद भावना व्यक्त की, उससे आचार्य श्री और स्वयं मैं - दोनों गद्गद् थे । इनके भावों को सुनकर आचार्यश्री को बड़ा हर्ष हुआ और मुझे भी बड़ी प्रसन्नता हुई। ऐसी भावना वही व्यक्ति प्रदर्शित कर सकता है जिसमें कुछ गंभीरता होती है, साधना की ऊंचाई होती है । अन्यथा ऐसी भावना निकलती नहीं । जानते सब हैं कि हमारे संघ की एक सुनिश्चित व्यवस्था है- आचार्य ने जिस मुनि को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया, भावी आचार्य घोषित कर दिया, फिर कोई राजी हो या नाराज, उसे स्वीकार करना ही पड़ता है । मर्यादा को जानना सरल है, पर प्रत्येक व्यक्ति के अंतर्मन की मर्यादा कुछ और ही होती है। वह अपनी-अपनी वृत्ति पर निर्भर होती है ।
समानता का दर्शन
ईर्ष्या जटिलतम मानसिक उलझनों में से एक है। आदमी अकारण ही दुःखी बन जाता है। ईर्ष्या से मानसिक तनाव बढ़ता है। ईर्ष्या उस व्यक्ति के मन में पैदा होती है जिसे अधिक आत्मिक समानता में विश्वास नहीं होता । जो मानता है कि हर आत्मा समान है, हर आत्मा में अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द और अनन्त शक्ति है, हर आत्मा को विकास करने का अधिकार है और हर आत्मा उसका विकास कर सकती है, वह व्यक्ति दूसरे का विकास देखकर ईर्ष्यालु नहीं होता किन्तु प्रसन्न होता है । ईर्ष्या नास्तिकता का चिन्ह है। क्या आत्मनिष्ठ व्यक्ति आत्म-विकास पर एकाधिकार मान सकता है ?
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दूसरे के विकास को नकारने का अर्थ गुणों की श्रेष्ठता को नकारना है । यदि गुणों की अच्छाई में हमारा विश्वास है तो वे गुण किसी में भी प्रकट हुए हों, हमारे लिए अभिनन्दनीय हैं। इस चिन्तन की पुष्टि से मानसिक हर्ष निश्छिद्र और अव्यवच्छिन्न बन जाता है। दूसरे की विशेषता देखी तो प्रमोद की भावना जागी, हर्ष की भावना जागी; कभी कोई हीनता का अनुभव नहीं हुआ और अपने पुरुषार्थ की ओर ही ध्यान गया। यह हंसने वाली चेतना है। समस्या में से समाधान खोजने वाली
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चेतना या दुःख में सुख खोजने वाली चेतना है । ऐसे लोग भी बहुत मिलते हैं जो इस चेतना का विकास कर लेते हैं और निरन्तर सुख में रहते हैं, दुःख का अनुभव नहीं करते । अज्ञानी मनुष्य के लिए यह संसार समुद्र जहर से भरा हुआ है और प्रमोद भावना वाले मनुष्य के लिए यह संसार समुद्र अमृत से भरा हुआ है। अमृत ही अमृत है उसके लिए। एक के लिए जहर और एक के लिए अमृत ।
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