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— अनुभव का उत्पल)
अनुभव का उत्पल
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प्रेम के प्रतीक
मेरे साध्य हैं वे स्थूलभद्र , जो कोशा के कमनीय हाव-भाव और शृंगार से लव भर भी विचलित नहीं हुए।
मेरे साध्य हैं वे स्थूलभद्र, जिन्होंने कोशा की बांकी चितवन की अवहेलना कर डाली। “अच्छि पिच्छियाई कोसा न जेण गणियाई।"
मेरे साध्य हैं वे विजय, जिनकी काम-विजय आज भी हमें विजय के लिए अभियान की प्रेरणा दे सकती है।
मेरे साध्य हैं वे विजय, जिनका भेद-चिन्तन अभेद को देख ही नहीं पाया। वह अपवाद ही रहा।
मेरे साध्य हैं वे सुदर्शन, जिनके चैतन्य दीप को प्रलय-पवन न बुझा सका और जिन्हें मौत न डरा सकी।
मेरे साध्य हैं वे सुदर्शन, जो काजल की कोठरी में बैठकर भी कालिख से बचे और जिन पर कजरारी आंखें कालिख नहीं पोत सकीं।
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