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आचार्य भिक्षुकृत सुदर्शन चरित का काव्य सौन्दर्य
तीन बार उपसर्गों में फंसने पर भी वह अडोल रहता है । जिस काम युद्ध में बड़े-बड़े महारथी लोग भी पराजित हो जाते हैं उसे सुदर्शन अनायास ही जीत कर अजेय योद्धा बन जाता है ।
रौद्र :
'क्रोध' रौद्र रस का स्थाई- भाव है । रानी - अभया के विश्वास में आकर राजा सुदर्शन को प्राणदण्ड देता है । यहां राजा का कोप रौद्ररस का उदाहरण है—
ए बात सुणी राय कोपियो तीन लीहटी चाढ निलाड । इण सेठ सुदर्शन नें मारवा किण विध देऊ प्रहार ॥ *
श्रृंगार :
शृंगार रस का स्थाई भाव है 'रति' । कपिला, अभया एवं दवदन्ती वेश्या की कामुकी चेष्टाएं शृंगार रस के उदाहरण हैं । सुदर्शन-मनोरमा को छोड़कर शेष अपुष्ट शृंगार के निदर्शन हैं ।
अधिकांश स्थलों पर विप्रलम्भ शृंगार के उदाहरण मिलते हैं--- रूपे रंभा सारखी अपच्छर रे उणियार ।
शीलादि गुण रहित निर्लज नार कपिला सेठ के काम विरह में व्यथित
कपिला काम आतुर थइ रे लाल ।
'कूड कपटनी कोथली' कपिला नार विरह में थक गयी, उसका एक भी 'डाव' नहीं लगा, सेठ मिलन की चाव अधूरी रह गई । " यह विप्रलम्भ श्रृंगार का उदाहरण है । कपिला की तरह अपार रूपवती 'अंग उपंग श्रीकार' और 'विजलनी - चमत्कार' से युक्त रानी अभया भी सेठ से भोग भोगने के लिए बेचैन है । अन्त में पराजित होती है । उसकी इच्छा अधूरी रह जाती है ।
करुण :
करुण रस का स्थाई भाव दुःख है । सेठ सुदर्शन को शूली पर लटकाए जाने की घोषणा सुनकर सारी प्रजा हाहाकार कर उठी । उसे अब सेठ जीवन की आशा समाप्त हो गई थी। जीवन की आशा न रहे वहां करुण रस का साम्राज्य होता है! जैसे भवभूति के राम को सीता- मिलन विषयक आशा समाप्त हो गई है ।
सेठ सुदर्शन की कारुणिक स्थिति
अंग उपंग मरोडने गाढो बांध्यों सेठ ने तास ।
ए बात सुणी छे सेठ नी सारा नगर मझार ॥ इस प्रकार रस विनियोजन में कवि सफल हुआ है ।
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