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________________ प्ररोचना 'श्रद्धा स्वीकारो तेरापंथ रा अधिदेवता' जहाँ की धरती रत्नगर्भा के पावन अभिधान से अभिहित है, जो अपनी वीरता, युद्धकला-कौशल, पवित्रता एवं अनेक दुर्लभ रत्नों की खनि है, जहाँ की भूमि प्राचीनकाल से ही अनेक अवतार, ऋषि, महर्षि एवं वीरों की जीवन स्थली है । जिस देश की मिट्टी त्याग, बलिदान, आत्मसमर्पण और सर्वस्व-विसर्जन की पावन सुगन्धि से सुवासित है, आज भी कण-कण इस तथ्य के साक्षी हैं कि यह प्रदेश राणासांगा, राणाप्रताप आदि जैसे धौरेय-गुणसम्पन्न, पराक्रम-चरित्र-निष्ठ पुत्रों को जन्म दिया, पद्मिनी जैसी हजारों वीरांगना-सती-कुलवन्तियों का जनक बना तो दूसरी तरफ यहीं की मीरा सदेह कृष्ण में समा गई। क्रांतद्रष्टा-आचार्य भिक्षु, प्रतिभा-प्रवीण श्री मज्जयाचार्य एवं आधुनिक विश्व की महान् उपलब्धि, वाक्पति के सार्थकअभिधान से अलंकृत आचार्यश्री तुलसी का सृजन भी वंदनीया मारुधरी-नंदना कुलवंती वदना के निरूपम एवं निर्वद्य-गोद में हुआ। इसी उर्वरा भूमि ने अनेक महापुरुषों के साथ विविध कलाओं एवं नव्य-साहित्यिक संविधानकों की महार्य सम्पत्ति संसार को दी। राजस्थान की धरती पर अनेक भाषाओं का अनवच्छिन्न प्रवाह आदि-काल से प्रवाहित है । संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा का प्रभूत विकास इस प्रदेश की महती विशिष्टता है। _ 'गामगहेलरी' की तरह निसर्ग-रमणीयता, काम्य-कमनीयता एवं चारु-चर्वणीयता से युक्त राजस्थानी भाषा अत्यन्त समृद्ध है। इस भाषा में अनेक कवि, कथाकार एवं व्याख्याकार हुए हैं। सहस्रों ग्रन्थों-महाकाव्य, खंडकाव्य, चरितकाव्य, नीतिकाव्य, गीतिकाव्य गद्यसाहित्य एवं कथासाहित्य, का सृजन हुआ है । कुछ की ओर तो विद्वानों का ध्यान गया, प्रकाशन भी हा लेकिन आज भी सहस्राधिक ग्रन्थ संग्रहालयों एवं ग्रन्थागारों की शोभा बढ़ाते हुए अपने निर्वाण के अन्तिम क्षण गिन रहे हैं। राजस्थान में अनेक आचार्य एवं सम्प्रदायों का उदय हुआ। विविध मनीषियों ने अपने अनुसार अपनी ज्ञान-गंगा को सामान्यजन के लिए प्रवाहित किया। श्वेताम्बर जैन परम्परा में सन् १७८३ ई० में आचार्य भिक्षु जैसे महान क्रांतिकारी एवं निर्व्याज-ऋजुता-सम्पन्न सिद्ध-साधक का जन्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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