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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
__---मन रो जाण्यो कद हुवै (पृ० ३४९) टुकड़ा-टुकड़ा हुवै कलेजो
(पृ० ३३९) मगन चरित्र
----जोश में हो संता राखो होश (पृ० ४८) ---जग हांसी घर हांण (पृ० ४८)
-~~~-देख तिलां में तेल, जल्यो दूध रो फूंक-फूंक कर तक पीवै (पृ० ३५१) (४) कवि की बहुज्ञता
आचार्यश्री तुलसी के इन चारों चरित काव्यों से कवि की बहुज्ञता भी पग-पग पर परिलक्षित होती है। कवि काव्य शास्त्र का मर्मज्ञ तो है ही लेकिन इन काव्यों में कवि के आयुर्वेद एवं ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। कवि षट्दर्शन का भी ज्ञाता है। कवि में जैन धर्म दर्शन, व नीति शास्त्र की भी गूढ़ पकड़ है । तेरापंथ धर्मसंघ के इतिहास की जानकारी भी प्रामाणिक रूप से है। इसके साथ ही तत्कालीन राजवंशों के इतिहास की भी पकड़ है । कथानक को गति देने के लिये कवि ने पौराणिक व ऐतिहासिक घटनाओं का भी सहारा लिया है। कवि का भौगोलिक ज्ञान भी पग-पग पर दृष्टव्य है । सामाजिक रीति-रिवाज, खान-पान, सांस्कृतिक मूल्य आदि पर भी अच्छी दखल है । प्रकृति चित्रण व ऋतुओं के वर्णन से कवि की नैसर्गिक जानकारी भी परिलक्षित होती है। कवि बहुभाषा विद भी है । वह न केवल राजस्थानी का अपितु संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अंग्रेजी, हरियाणवी, पंजाबी आदि भाषाओं का भी ज्ञाता है । कवि संगीतज्ञ भी है। विभिन्न राग-रागनियों में निबद्ध गीत उसके प्रमाण हैं । छंद शास्त्र, अलंकार शास्त्र, ध्वनि शास्त्र, और व्याकरण शास्त्र में भी कवि का ज्ञान बढ़ा-चढ़ा है । ऐसी और भी बहुत सी बातें हैं, जिससे कवि की बहुज्ञता प्रकट होती है, तथा बहुज्ञता सम्बन्धी सामग्री को उदाहरण सहित व्याख्यायित किया जा सकता है । प्राचीन साहित्य शास्त्र के ग्रन्थों में इस बात के निर्देश दिये गये हैं कि कवि को अनेक बातों का ज्ञान रखना चाहिये, उसकी बहुज्ञता काव्य को समृद्ध करती है। राजशेखर के “काव्यमीमांसा' और संस्कृत के एक अन्य ग्रन्थ "कविकर्पटिका' में ऐसे उल्लेख हैं। इन संदर्भो के आधार पर देखें तो आचार्यश्री तुलसी की एक कवि के रूप में बहुज्ञता उल्लेखनीय, प्रशंसनीय एवं महनीय है। ५ उपसंहार
उपर्युक्त संक्षिप्त मूल्यांकन से यह स्पष्ट है कि आचार्य श्री तुलसी के माणक महिमा, डालिम चरित्र, कालूयशोविलास और मगन चरित्र शीर्षक
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