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राजस्थानी चरित काव्य-परम्परा और आ० तुलसीकृत चरित काव्य
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पूर्ण एवं उल्लेखनीय चरित काव्य हैं। ये चरित काव्यों के समस्त लक्षणों से युक्त हैं । भावपक्ष एवं कलापक्ष की दृष्टि से भी ये कृतियां प्रौढ़ तथा उत्कृष्ट
भावपक्ष [१] कथानक---
कथानक का संक्षिप्त सारांश कृतियों के परिचय के अन्तर्गत ऊपर दिया जा चुका है। इन चारों कृतियों का यह कथानक तेरापंथ धर्मसंघ के तीन आचार्यों क्रमशः माणकगणी, डालमगणी एवं कालूगणी तथा मंत्री मुनि के रूप में ख्यात मगनमुनि से सम्बन्धित है। चारों ही कथानक ऐतिहासिक हैं तथा तेरापंथ धर्म संघ के समकालीन इतिवृत्त की प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत करते हैं । कथानक में कल्पना का समावेश नाम मात्र है। मूल कथानक के साथ-साथ प्रासंगिक घटनाओं एवं आख्यानों का सजीव एवं जीवंत चित्रण कवि की अपनी विशेषता है । इससे कथानक की मौलिकता में प्रामाणिकता का समावेश हुआ है । कथानक की प्रस्तुति सहज व स्वाभाविक है। अतिशयोक्ति एवं आडम्बर से कवि ने सर्वत्र परहेज किया है। कृतियों के शीर्षक चरितनायकों के नाम पर ही रखे गये हैं तथा उनके जीवन का समग्र चित्रण चरित काव्यों के मूल लक्षणों (जिनका उल्लेख ऊपर किया जा चुका है) के अनुरूप है।
[२] रस योजना--काव्य में रस का प्रयोग काव्यास्वाद अथवा काव्यानन्द के लिये होता है। इन चरित काव्यों में विभिन्न रसों का चमत्कारपूर्ण परिपाक हुआ है। काव्य में नौ रस माने गये हैं यथा---शृंगार, करूण, शांत, हास्य, वीर, भयानक, रौद्र, विभत्स एवं अद्भुत, किन्तु अब आधुनिक साहित्य शास्त्रियों ने वात्सल्य को भी एक रस के रूप में स्वीकार कर लिया है। इस प्रकार अब दस रस हो गये हैं। आचार्य श्री तुलसी कृत इन चारों ही काव्यों में कम ज्यादा सभी रसों का परिपाक हुआ है । कालयशोविलास में स्वयं कवि ने कहा है
शान्त करुण रस, तरुण हास्य रस, वीराद्भुत अनवद्य । प्रादूर्भूत अभूतपूर्व रस, श्रोता हृदये सद्य ।।
शान्त, करुण, हास्य, वीर और अद्भूत रस के अतिरिक्त शृंगार, रौद्र, वात्सल्य, भयानक आदि रसों का भी अन्य कृतियों में प्रयोग हुआ है, लेकिन चारों कृतियों में प्रधान रस शान्त रस ही है । यही अंगी रस भी है। शान्त रस के सहायक रस के रूप में करुण, वात्सल्य, वीर आदि रस भी कृतियों में उपस्थित है । कहीं-कहीं रौद्र अद्भुत व भयानक रस भी उपलब्ध होते हैं। विभत्स व शृंगार रस का प्रयोग साहित्यिक मान्यता के अनुरूप नहीं हुआ है । क्योंकि चारों ही काव्य शान्त रसात्मक भक्ति से परिपूर्ण है, इस
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