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तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान
प्रकार इन रसों के परिपाक का इन कृतियों में अवसर नहीं मिला है यह स्वाभाविक भी है। उपलब्ध रसों के उदाहरण दृष्टव्य हैं ---- शान्त रस
परम कृपाकर मुझ ने गुरु षडदर्शन पाठ पढ़ावे रे । अरु प्रमाण नय तत्व ग्रंथ रो, गौरव हृदय बिठावे रे ।। श्री काल कल्याण मन्दिर, पाद-पूर्ति स्तुति गाव रे । संवत्सरि-दिन भर परिषद में सुण मुझ मन सहलावै रे ॥
(कालू यशोविलास, पृ० २१३)
करुण
ओ बिना वगत सूरज छिपग्यो, लागै है अंबरियो ऊणो। बुझग्यो दीपक जो जगमगतो, करग्यो सगले घर ने सूनो ।। तारा-नक्षत्र घणां नभा में, पिण चांद बिना फिका लागे । शासण सारो सब साध-सत्यां, शोभै शासणपति रे सागै ।
(डालिम चरित्र, पृ०६८)
वात्सल्य
महंगो माणकयों, हीरा पन्नां विच राखियो पुण्योदय-पाप परखियो, अखियां रो तारो, हार हिया रो जी ।। कोमल है काया, निश्छल है तन री छाया मन को निर्मल, नहिं माया आयास नहीं मुनि जीवन वारो जी ॥
(माणक महिमा, पृ. ३७)
हास्य
वृन्दावन, मथूरा, काशी, जासी तो पाप पलासी सुण-सुण मन में आबै हांसी, बात दुनिया री ।। गंगा, गोमती, त्रिवेणी, न्हा जीवन नैया खेणी। सब रवये पाप की श्रेणी, सहज सुविधा री ।।
(कालूयशोविलास, पृ० १११)
सुणी मरुस्थल थल री यात्रा, करणी मन में ठाणी। अति आतप, अन्धड़, असभ्यजन, निर्जलमुल्क निसाणी रे ।। सरद-मौसम लक्कड़दाहो घाम तपै ज्यं भट्टो । बरसाल बिरखा रा सासा, उड़े मौसमी मटटी रे ।।
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