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________________ ५० तेरापंथ का राजस्थानी को अवदान उज्जैन नगर का ऐतिहासिक वर्णन, नायक डालचन्दजी के परिवार, शिक्षादीक्षा, जयाचार्य से मिलन, कच्छ यात्रा तथा सातवें आचार्य पद पर निर्वाचन तक और सम्बन्धित प्रासंगिक घटनाओं ये युक्त कथानक का विस्तार प्रस्तुत किया गया है। द्वितीय खण्ड में आचार्य पद के निर्वाचन की अप्रत्याशित सूचना, संघ मिलन, पदारोहण, चातुर्मास, साधु-साध्वियों की दीक्षा, रोचक प्रसंग, संस्मरण, उत्तराधिकारी का चयन एवं स्वर्गारोहण तक का कथानक इसमें गुम्फित है। (४) मगन चरित्र . यह चरित काव्य तेरापंथ के मंत्री मुनि मगनलालजी से सम्बन्धित है। ये तेरापंथ धर्मसंघ के मनीषी मुनियों में से एक थे। यद्यपि ये आचार्य नहीं थे, लेकिन इन्होंने तेरापंथ के लगातार पांच आचार्यों के युग को प्रत्यक्षतः अपनी आंखों से देखा था, इस कारण ये संघ के एक स्तंभ थे । इन्हीं के जीवन चरित को इस कृति की कथावस्तु का आधार बनाया गया है। वि.सं. २०१६ में मंत्री मगनलालजी का स्वर्गवास हआ, उसके बाद मगन चरित्र का सृजन करने का अनुक्रम बना, लेकिन दक्षिण में प्रवास और मध्यप्रदेश में उत्पन्न विप्लव के कारण इसमें व्यवधान उत्पन्न होता रहा, अन्ततः वि.सं. २०२८ आषाढ़ मास की पूर्णिमा गुरुवार तद्नुसार आठ जुलाई सन् १९७१ को इसकी रचना पूर्ण हुई । इसकी प्रथम प्रति मुनि श्रमण सागर ने तैयार की। मुनि मधुकरजी ने इसको अन्तिम रूप दिया और साध्वी प्रमुखाजी ने इसका सम्पादन किया । कृति में कुल ९४९ पद्य हैं तथा देशी राग-रागनियों की लगभग बीस लयों में यह रचना आबद्ध है। इसका सम्पूर्ण कथानक पांच युगों में विभक्त है, यथा मघवा युग, माणक युग, डालिम युग, काल युग और तुलसी युग। छठा विभाग जीवन झांकी एवं प्रशस्ति का है । कृति का आरंभ मघवा युग से होता है। प्रारंभ में परमेष्ठी को नमस्कार किया गया है, तत्पश्चात मोटा ग्राम (गोगुन्दा) की प्राकृतिक छटा का मनोहारी वर्णन है । इसके बाद मेवाड़ की ऐतिहासिकता मंत्री मुनि का पारिवारिक परिचय वैराग्य, दीक्षा, मघवा, माणक, डालिम, कालगणी आदि आचार्यों का सान्निध्य, इन आचार्यों के काल की विविध घटनाओं में मंत्री मुनि के योगदान का वर्णन है । तुलसी युग का विवरण अधिक विस्तार से है। छठे विभाग में मंत्री मुनि के मधुर संस्मरणों को प्रस्तुत किया गया है । प्रशिस्त में रचना क्रम में उत्पन्न बाधाओं का वर्णन चरित काव्यों का मूल्यांकन - आचार्य श्री तुलसी कृत उपर्युक्त चारों चरित काव्य अपने आप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003137
Book TitleTerapanth ka Rajasthani ko Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnarayan Sharma, Others
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages244
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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